II जिंदगी आंसुओं का ए सैलाब भी II
हर घड़ी वो जगाता जागो तो कभी l
राह तुम को दिखाता देखो तो कभी ll
बात कितनी हुई आसमां की मगर l
एक गजल झोपड़ी पर कहो तो कभी ll
जिंदगी आंसुओं का ए सैलाब भी l
अपने महलों से नीचे देखो तो कभी ll
बात जीवन की असली समझ से परे l
बनके दीपक किसी दर जलो तो सही ll
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश l