II कुछ भी हुआ ना पूरा….II
कुछ भी हुआ ना पूरा ,हर काम है अधूराl
जाना पड़ेगा फिर भी,अनुबंध है करारे ll
ना तुम ने कुछ दिया है ,ना मैंने कुछ लिया है l
गम और खुशी धरा पर, सब उसने ही उतारे ll
जितना संभालो उतना ,संभला नहीं मुकद्दर l
कल ही बिखर गया, अब कल को क्या सवारे ll
मन मोर नहीं बस मैं ,और मोर मगन हैl
मन में आग लगाए ,सावन की यह फुहारें ll
सुबह चिड़ियों का चहचहाना ,शाम घोसले जाना l
दिन तो गुजर भी जाए ,शाम गुजरे ना गुजारे ll
जिसको लहू पिलाया ,अपना भी खिलायाl
हक बांटते वही हैं ,करके हमें किनारे ll
वह कितना थक गई है ,सदियों से बह रही है l
बूढी यह नदी भी ,अब ढूंढती किनारेll
अकेले अब तो चलना ,जब तक भी अब चलेंगे l
कसम भी है तुम्हारी ,कैसे तुम्हें पुकारें ll
हे खेल सब उसी का, जिसके दम से दुनियाl
टूटी कश्ती भी चले, बिन पतवार बिन सहारेll
संजय सिंह “सलिल ”
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश