II इंसान की फितरत II
इंसान होकर भी बेजुबा हो गए सभी l
खामोशियों से बोलना आदत बनी रही ll
ऐसा नहीं कि हम को कोई मलाल है l
मिटती नहीं मिटाने से हसरत बनी रही ll
ऐसा नहीं कि दर्द भी होता नहीं हमें l
बिन बोले ना बताने की फितरत बनी रहीll
अच्छा कहेगा मुझको जब अच्छा उसे कहूं l
लेने देने की उसकी तो आदत बनी रही ll
शेरों को मापना हो तो हो जाओ बदगुमां l
तारीफ जो अदब की इमारत बनी रही ll
मेरी ग़ज़ल जमीर मेरा मेरी बात है l
तारीफ ना हो कोई इबादत बनी रही ll
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश l