II..आशिकी के सामने…II
कब चला है बस किसी का आशिकी के सामने l
दो जहां की क्या खुशी तेरी हंसी के सामने ll
आजकल मदहोश है हम बे सबब ही रात भरl
नींद भी आती कहां अब तो खुशी के सामने ll
रूप ऐसे के खिला जैसे कमल हो झील मेंl
सादगी भी सीखती कुछ सादगी के सामने ll
क्या हुआ कैसे हुआ बिन कुछ कहे ही सब हुआ l
रेत के टीले के जैसा मैं नदी के सामने ll
बिन तेरे अब जिंदगी यह कल्पना से भी परे l
ए जुबा खामोश उसकी एक अदा के सामने ll
हो ‘सलिल ‘जब पार पाना बाढ़ से मुश्किल बहुत l
छोड़ दो सब कर भरोसा अब किसी के सामनेll
संजय सिंह’सलिल’
प्रतापगढ़,उत्तर प्रदेश l