IAS इण्टरव्यू
छात्र – श्रीमान मैं अंदर आ सकता हूँ..?
इंटरव्यूअर – कम एंड सिट हियर । व्हाट इस योर नेम..?
छात्र – स्थूल शरीर का या सूक्ष्म शरीर का..?
इंटरव्यूअर( गुस्से में..) – मीन्स…? अपना नाम बताओ..?
छात्र – श्रीमान मैं आपसे यही पूछ रहा हूँ किसका नाम बताऊँ स्थूल शरीर का या सूक्ष्म शरीर का..?
इंटरव्यूर – ये स्थूल , सूक्ष्म क्या है..?
छात्र – श्रीमान आप जिसे प्रत्यक्षतः देख रहे हैं वह स्थूल है, वह भंगुर है, वह नाशवान है, उसी में इंद्रियों का जाल है, जिसमें मनुष्य फँसकर सभी प्रकार की बुराइयों के लिए अग्रसर होता है। यही स्थूल शरीर, भ्रष्टाचार, लालच, स्वार्थ, विद्रोह, चोरी, आसक्ति आदि बुराइयों के लिए जिम्मेवार है।
जबकि जिसे आप देख नही पा रहे,महसूस नही कर पा रहे हैं और जिससे स्थूल शरीर गतिमान है वह सूक्ष्म शरीर है..। यह निराकार है, निर्विकार है, सर्वव्यापी है, एकात्म है। यही आप में, आप में, आप में और मुझ में है और सम्पूर्ण जीव और अजीवों में है। सूक्ष्म शरीर के स्तर पर हम सब एक है, हममें कोई भेद नही, ना जाति का,ना धर्म का,ना प्रतिष्ठा का,ना पद का..! अब आप बताओ मैं किसका नाम बताऊँ…??
इंटरव्यूअर- तुम आईएएस का इण्टरव्यू करने आये हो या अपनी फिलोसोफी का ज्ञान झाड़ने..?
छात्र- श्रीमान मुख्य समस्या इसी स्थूल शरीर की है । और भारत सरकार द्वारा ias रखने का उद्देश्य है स्थूल शरीर को नियंत्रित करना क्योकि सूक्ष्म शरीर तो अचर है, अमर है, अतीन्द्रिय है, सर्वव्यापी है और एक सामान है। जो आपके अंदर है वही मेरे अंदर और वही उस जनता और सरकार के अंदर है। इसलिए हम सब समान है ।
इंटरव्यूअर( क्षात्र के ऊपर इण्टरव्यूअर की अंग्रेजी और प्रतिष्ठा का कोई प्रभाव ना देखकर अंग्रेजी को छोड़ हिंदी भाषा में पूछता है..)- छोड़ो, ये बताओ तुम्हारी उम्र क्या है..?
क्षात्र- किसकी उम्र स्थूल शरीर की या सुक्ष्म शरीर की..?
इण्टरव्यूअर(खीझते हुए..)- अरे कोई भी बताओ..?
क्षात्र- श्रीमान आयु तो केबल समय की अस्तित्वहीन भ्रमित अंकीय गणना है क्योकि समय को मापना संभव ही नही है क्योकि ना तो इसकी शुरुआत का पता है और ना ही इसके अंत का। जब मनुष्य नही था तब भी समय था और जब मनुष्य है तब समय है और जब नही होगा तब भी समय होगा। तो फिर आप बताओं में कैसे बताऊं की क्या आयु है..?
इण्टरव्यूअर(खीझते हुए..)- अरे तुम कितने साल के हो गए, ये भी नही पता..?
क्षात्र- श्रीमान स्थूल शरीर के स्तर पर जब से मेरा जन्म हुआ है यह शरीर परिवर्तित होता रहा है। जिस रूप में , मैं पैदा हुआ था वह आज मैं नही हूँ । मैं जो आज हूँ वह कल नही हूंगा। हमारी इन्द्रियाँ में इतनी शक्ति नही कि वो इस परिवर्तनशील विस्व को देख सकें। यह बिल्कुल उसी प्रकार है जैसे दीपक की लॉ हर बार बदलती रहती और और नदी का पानी हर बार परिवर्तित होता रहता है..!
इण्टरव्यूअर(वेचैन होकर)- अरे मेरे भाई, सूक्ष्म शरीर की ही उम्र बता दे..?
क्षात्र- श्रीमान सूक्ष्म शरीर की कोई आयु ही नही होती। वह ना तो जन्म लेती है और ना ही मरती है। वह तो अनंत है, समय से आबद्ध है। आज वो इस शरीर में तो कल हो सकता है आपके में हो या फिर किसी अन्य के में..। यह समय सीमाओं से स्वतंत्र है..!
इटरव्यूर – ठीक है, हम आपकी बातों से सहमत है । आप बताइए देश से भ्रस्टाचार को कैसे दूर किया जा सकता है..?
छात्र- श्रीमान भ्र्ष्टाचार लालच है, स्वार्थ है, चोरी है…! इसको सूक्ष्म शरीर के स्तर पर ही दूर किया जा सकता है। जब प्रत्येक व्यक्ति अपने सूक्ष्म शरीर से स्वयं परिचित हो जाएगा तो उसकी नजरों से सामाजिक भेद समाप्त हो जाएगा..! फिर उसे सभी का दर्द अपना दर्द महसूस होगा..जिस कारण वह किसी को भी किसी भी प्रकार का दर्द नही देगा..!
इंटरव्यूअर – अच्छा तो आप बताइए, इस सूक्ष्म शरीर को जानेंगे कैसे..?
छात्र- सूक्ष्म शरीर को जानने के लिए जरूरी है कि सभी प्रकार की आसक्तियों से स्वयम को दूर किया जाए, सभी को एक समान और एक ही समझा जाय…। जब इंद्रिय वासना समाप्त होगी तो लालच,स्वार्थ,तृष्णा का अंत होगा, जब इनका अंत होगा तो भेद समाप्त होगा और जब भेद समाप्त होगा तो एकात्मकता जन्म लेगी और फिर मैं,मैं नही रहूँगा, आप,आप नही रहोगे, मैं और आप और सम्पूर्ण जगत एक हो जाएंगे, स्थूल शरीर होते हुए भी प्रभावहींन हो जाएगा और
ब्रह्म दर्शन होंगे और सब बुराइयों का अंत हो जाएगा..! फिर ना राजा होगा ना प्रजा, ना चोर होंगे ना पुलिस, ना शत्रु होगा और ना ही मित्र..इसप्रकार ना ias होगा और ना ही इण्टरव्यू..। और फिर ना भ्रष्टाचार होगा और ना भ्रष्टाचारी..!
इण्टरव्यूअर- आपको नही लगता जो आप बता रहे हो वो सब असम्भव है..!
छात्र- श्रीमान, प्रश्न पूछने से पहले आपको भी सोचना चाहिए, कि इन्द्रिय वासना से भौतिकता में ग्रस्त व्यक्ति क्या भ्रष्टाचार मुक्त हो सकता है..! और क्या आप सभी पूर्ण जिम्मेवारी के साथ कह सकते हो कि आपने शास्त्रों का,समाज का, और परिस्थितियों का ज्ञान पाने के बाद भी इस जीवन में कोई भ्रष्टाचार नही किया..?
इण्टरव्यूअर(झेंपते हुए..)- ये आप क्या बकबास कर रहे हो..?
छात्र- श्रीमान मैं आपके प्रश्नों का ही जबाब दे रहा हूँ..! क्या आप कीचड़ की बदबू को, पानी से मिट्टी के कटाब को पूर्ण रूप से रोक सकते है..! नही रोक सकते क्योंकि यही इनकी प्रकृति है..! इसीप्रकर जब तक आप आत्मज्ञान से मन को और मन से इंद्रियों को नही पकड़ोगे तब तक आप भ्रष्टाचार मुक्त नही हो सकते। और सबसे बड़ी बात तो श्रीमान यह है कि भौतिक समाज भौतिकता में रहकर सामने बाले से आशा करता है कि वह मानवीय आदर्शों का पालन करे, कैसे हो सकता है..? क्या है कोई ऐसा गणितीय सूत्र..?
हाँ, जिस व्यक्ति को आत्मज्ञान होता है वह समस्त भौतिकता में होकर भी हीरे की भांति स्वयं को प्रदीप्तित करता रहता है। और जिस व्यक्ति को आत्मज्ञान हो गया वह किसी प्रकार का ना तो भ्रष्टाचार करेगा और ना ही कोई अमानवीय कार्य। श्रीमान नियम-कानून व्यक्ति को रोकते है ना कि उसकी इक्षा को जबकि आत्मज्ञान से व्यक्ति और उसकी इक्षा, स्वयं व्यक्ति ही रोकता है…