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30 Nov 2021 · 1 min read

हम थोड़ा सा चुप क्या हुए।

हम थोड़ा सा चुप क्या हुए यूँ ही अपने आप में।
तुम हम पर ही अपनी झूठी तोहमतें लगाने लगे।।1।।

जरा सा गुरबतों से पाला क्या पड़ा जिंदगी में।
तुम अपना असली रंग हमको दिखाने लगे।।2।।

कभी मिलनें के लिए हमसे जो बेताब रहते थे।
ना मिलनें के वह देखो सब बहाने बनानें लगे।।3।।

मिलनें से पहले हमसे जो जीते थे गरीबी में।
वह बाज़ारों में अब पैसों से पैसा बनाने लगे।।4।।

कसमें खाते थे जो हर वक़्त मेरी वफ़ादारी में।
वही अब निस्बतों से मेरी बहुत दूर जानें लगे।।5।।

थकते ना थे जो हाथ सालामें अदब में हमारें।
मेरी हस्ती को वही सब गाफिल मिटाने चले है।।6।।

दीवारों दर के ज़र्रे-ज़र्रे से पूँछों इस कोठी के।
ऐसे ना टूटेगी इसको बनाने में जमाने लगे।।7।।

इक लम्बा वक्त जिया है हमनें मेरी गर्दिशों का।
वह मुझें देखो जीने का सलीका सिखाने लगे।।8।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ

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