Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Dec 2021 · 3 min read

तेरी बिंदिया रे

कभी कभी बातें जीवन का हिस्सा बन जाती हैं, तो कभी कोई बात..पूरे जीवन पर हावी रहती है..प्रेरणा को बचपन से पूजा-पाठ, सजना- सॅंवरना बहुत पसंद था। एक तरफ पढ़ने में टाॅपर तो दूसरी ओर इतनी सुन्दर कि लगता था ईश्वर ने बहुत समय लेकर उसको रचा-गढ़ा था..उसपर जब वो अपने दमकते माथे पर छोटी सी बिंदी लगाती थी तब तो बस एकदम अनुपम रूप निखर आता था उसका.. ग्रेजुएशन होते ही उसके विवाह के लिए रिश्ते आने लगे..और देखते-देखते वो सुप्रसिद्ध भल्ला खानदान की बहू बन गई.. बखूबी अपनी जिम्मेदारियों को निभाते निभाते वो दो प्यारी सी बेटियों की माॅं भी बन गई..चारों तरफ उसके रूप की, गुणों की बाॅंते होती थी..कि सहसा एक दिन उसके माथे पर कुछ खुजली सी शुरू हो गई..लाल निशान..चकत्ते .. धीरे धीरे जख़्म सा हो गया..डाक्टर दवा तो देते पर फायदा जरा भी न होता, परिवार सदमें में तब आया जब एक बड़े अस्पताल की रिपोर्ट में स्किन कैंसर निकल आया..मायका.. ससुराल..चारो तरफ हाहाकार मच गया.. रेडियो थेरेपी के कारण चेहरा भयानक हो चुका था, इतनी बुद्धिमान स्त्री..समय की मार को झेलकर एकदम बदल चुकी थी.. धीरे धीरे वो ठीक हो रही थी, पर एक शक उसके मन में आ चुका था कि कल होगा भी या नहीं..वो हर वक्त रोती रहती और अपने श्रंगार के सामानों को छू-छू कर देखती, उसके भीतर जीने की इच्छा ही नहीं रही.. तिल-तिल कर घुटने लगी थी वो..उसको अथाह प्रेम करने वाला जीवनसाथी मिला था, वो भी इस सदमे से धक से रह गया था..पर कहते हैं ना कि समय कभी एक सा नहीं रहता.. उसके पति ने उसकी सोच को पुनः सकारात्मक करने की सोची.. उसके घर में ही गरीब लोगों के लिए एक दुकान खोल दी गई..जहाॅं हर सामान के साथ ही एक बिंदी का पत्ता फ्री में दिया जाता था..सिंदूर के कोई पैसे नहीं लिए जाते थे..इस अनोखे प्रयास से उनकी दुकान में हर समय भीड़ रहती थी.. प्रेरणा की एक छोटी सी राय लोगों की सुंदरता में चार चांद लगा देती थी.. धीरे धीरे प्रेरणा स्वस्थ होने लगी थी..उसकी दुकान की चर्चा और उसके व्यवहार की बातें दूर-दूर तक फैल चुकी थी.. कहते हैं ना कि जब आपकी सोच उत्तम हो, प्रयास निश्छल एवं सकारात्मक हों तो कायनात भी आपका दुःख दूर करने में लग जाती है.. गरीबों के आर्शीवाद का प्रभाव था या प्रेरणा का भाग्य, उसकी बीमारी ठीक हो चुकी थी..पर उसने अपनी दुकान पूर्ववत चलने दी..आज पूरे दो वर्ष के इलाज के बाद प्रेरणा शरद पूर्णिमा के पावन दिवस की पूजा करने के लिए तैयार होकर कमरे से निकली तो उसके पति ने भावुक हो कर उसको गले से लगा लिया और कानों में धीरे से कहा.. “बहुत सुंदर लग रही हो प्रेरणा” बहुत दिनों बाद अपने लिए ऐसी बात सुनकर प्रेरणा लाज से लाल हो पड़ी..तभी उसके कानों में आवाज पड़ी..’तेरी बिंदिया रे.. ‘ उसने पीछे मुड़कर देखा तो चौंक पड़ी..कि उसकी दुकान का नामकरण हो गया था.. दोनों बेटियाॅं बैनर लिए जा रही थीं..’तेरी बिंदिया रे’ और प्रेरणा .. दुकान का नाम पढ़कर खुशी से रो पड़ी..

स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 381 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
" तुम्हारे इंतज़ार में हूँ "
Aarti sirsat
पुरानी पेंशन
पुरानी पेंशन
डॉ०छोटेलाल सिंह 'मनमीत'
विचार सरिता
विचार सरिता
Shyam Sundar Subramanian
जो ज़िम्मेदारियों से बंधे होते हैं
जो ज़िम्मेदारियों से बंधे होते हैं
Paras Nath Jha
"मानद उपाधि"
Dr. Kishan tandon kranti
मुक्तक
मुक्तक
महेश चन्द्र त्रिपाठी
2929.*पूर्णिका*
2929.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
खामोश
खामोश
Kanchan Khanna
😊■रोज़गार■😊
😊■रोज़गार■😊
*Author प्रणय प्रभात*
धनतेरस
धनतेरस
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
#Dr Arun Kumar shastri
#Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
दो शे'र
दो शे'र
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
किसान आंदोलन
किसान आंदोलन
मनोज कर्ण
गुमशुदा लोग
गुमशुदा लोग
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
Har roj tumhara wahi intajar karti hu
Har roj tumhara wahi intajar karti hu
Sakshi Tripathi
मेरे प्यारे भैया
मेरे प्यारे भैया
Samar babu
इश्क की रूह
इश्क की रूह
आर एस आघात
नव संवत्सर
नव संवत्सर
Manu Vashistha
हम तो फ़िदा हो गए उनकी आँखे देख कर,
हम तो फ़िदा हो गए उनकी आँखे देख कर,
Vishal babu (vishu)
नींदों में जिसको
नींदों में जिसको
Dr fauzia Naseem shad
सिलवटें आखों की कहती सो नहीं पाए हैं आप ।
सिलवटें आखों की कहती सो नहीं पाए हैं आप ।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
चरित्रार्थ होगा काल जब, निःशब्द रह तू जायेगा।
चरित्रार्थ होगा काल जब, निःशब्द रह तू जायेगा।
Manisha Manjari
*मारा हमने मूक कब, पशु जो होता मौन (कुंडलिया)*
*मारा हमने मूक कब, पशु जो होता मौन (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
हे माधव
हे माधव
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
शिमला, मनाली, न नैनीताल देता है
शिमला, मनाली, न नैनीताल देता है
Anil Mishra Prahari
मनुख
मनुख
श्रीहर्ष आचार्य
सफलता
सफलता
Dr. Pradeep Kumar Sharma
सवाल~
सवाल~
दिनेश एल० "जैहिंद"
कितने छेड़े और  कितने सताए  गए है हम
कितने छेड़े और कितने सताए गए है हम
Yogini kajol Pathak
ये आंखों से बहती अश्रुधरा ,
ये आंखों से बहती अश्रुधरा ,
ज्योति
Loading...