क्या ख़ाक खुशी मिलती है मतलबी ज़माने से,
ज़रूरत में ही पूछते हैं लोग,
एक ठंडी हवा का झोंका है बेटी: राकेश देवडे़ बिरसावादी
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
यदि आप जीत और हार के बीच संतुलन बना लिए फिर आप इस पृथ्वी पर
अपूर्णता में पूर्ण है जो ,
न रंग था न रूप था खरीददार थे मिले।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
मुस्कराते हुए गुजरी वो शामे।
अरे कुछ हो न हो पर मुझको कुछ तो बात लगती है
ग़म से भरी इस दुनियां में, तू ही अकेला ग़म में नहीं,
आँखों में अँधियारा छाया...
वह बरगद की छाया न जाने कहाॅ॑ खो गई