छन-छन के आ रही है जो बर्गे-शजर से धूप
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
बुंदेली दोहा-सुड़ी (इल्ली)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आजा मेरे दिल तू , मत जा मुझको छोड़कर
*पानी सबको चाहिए, सबको जल की आस (कुंडलिया)*
पतोहन के साथे करें ली खेल
यह शोर, यह घनघोर नाद ना रुकेगा,
इधर एक बीवी कहने से वोट देने को राज़ी नहीं। उधर दो कौड़ी के लो
************* माँ तेरी है,माँ तेरी है *************
बिगड़ी छोटी-छोटी सी बात है...
हो सके तो तुम स्वयं को गीत का अभिप्राय करना।
रेत सी इंसान की जिंदगी हैं
किताब में किसी खुशबू सा मुझे रख लेना
मुस्कुराते हुए चेहरे से ,
ये ताकत जो बक्सी तुझे कुदरत ने , नशे में न झोंको उबर जाओ भाई
करके ये वादे मुकर जायेंगे
प्रकृति की गोद खेल रहे हैं प्राणी
23/176.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*