कभी धूप तो कभी बदली नज़र आयी,
रोज गमों के प्याले पिलाने लगी ये जिंदगी लगता है अब गहरी नींद
हमारे धर्म ध्वज के वाहक !
हम भी देखेंगे ज़माने में सितम कितना है ।
सही गलत की पहचान करना सीखें
मैंने अपनी, खिडकी से,बाहर जो देखा वो खुदा था, उसकी इनायत है सबसे मिलना, मैं ही खुद उससे जुदा था.
*हाले दिल बयां करूं कैसे*
मोर पंख सी नाचे धरती, आह सुहानी
भाग्य प्रबल हो जायेगा
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
*माहेश्वर तिवारी जी से संपर्क*
23/204. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
गले लगाकर हमसे गिले कर लिए।
"चार पैरों वाला मेरा यार"