पलकों ने बहुत समझाया पर ये आंख नहीं मानी।
उदासियां बेवजह लिपटी रहती है मेरी तन्हाइयों से,
तेरी आमद में पूरी जिंदगी तवाफ करु ।
जितना मिला है उतने में ही खुश रहो मेरे दोस्त
यहां ला के हम भी , मिलाए गए हैं ,
मउगी चला देले कुछउ उठा के
दो दिन की जिंदगानी रे बन्दे
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
समय-सारणी की इतनी पाबंद है तूं
नौकरी न मिलने पर अपने आप को अयोग्य वह समझते हैं जिनके अंदर ख
याद है पास बिठा के कुछ बाते बताई थी तुम्हे
रात जागती है रात भर।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
स्मरण और विस्मरण से परे शाश्वतता का संग हो
रोटी
Sarla Sarla Singh "Snigdha "