एक समय था जब शांतिप्रिय समुदाय के लोग घर से पशु, ट्यूवेल से
"मुश्किलें मेरे घर मेहमानी पर आती हैं ll
हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
ग़ज़ल- तू फितरत ए शैतां से कुछ जुदा तो नहीं है- डॉ तबस्सुम जहां
आप पाएंगे सफलता प्यार से।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस :इंस्पायर इंक्लूजन
𑒖𑒲𑒫𑒢 𑒣𑒟 𑒮𑒳𑓀𑒠𑒩 𑒯𑒼𑒃𑒞 𑒁𑒕𑒱 𑒖𑒐𑒢 𑒮𑒿𑒑 𑒏𑒱𑒨𑒼 𑒮𑓀𑒑𑒲
*किस्मत में यार नहीं होता*
"इन्तेहा" ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
यह सुहाना सफर अभी जारी रख
वो मेरे प्रेम में कमियाँ गिनते रहे
नफसा नफसी का ये आलम है अभी से
*उसकी फितरत ही दगा देने की थी।
पाक दामन मैंने महबूब का थामा है जब से।