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27 Aug 2023 · 1 min read

Ghazal

यादों से बांधा एक सिरा ज़न्जीरों का
जाने कैसे रंग उड़ा तस्वीरों का

नक्श इबारत ख़ूब लिखी थी चेहरे पर
जाने कैसे ख़ून हुआ तहरीरों का

जो महबूब निगाहों को मन्ज़ूर नहीं
खेल तमाशा ख़ूब है ये तकदीरों का

इश्क़ में हारे जीत उसी की होती है
इस में अक़्सर काम नहीं शमशीरों का

शाह मोहब्बत काम हुआ बदमाशों का
आग लगाना‌‌ काम हुआ दिलगीरों का

शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी

Tag: Poem
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