Ghazal
मुझे हाल ब्रह्म नज़र आ रहे हैं
जो महलों में कुमकुम नज़र आ रहे हैं
यह खुशियां मूरत्तब नहीं आरज़ी हैं हकी़कत में मातम नज़र आ रहे हैं
वो आंचल मुकद्दस जो थे रह गुज़र में बगा़वत के परचम नज़र आ रहे हैं
यह तफ़रीक़ कैसी है गंगो जमन में इधर तुम उधर हम नज़र आ रहे हैं
हम आपस की रंजिश में यूं बंट गए हैं सफे कुफ्र मुनज्ज़म नज़र आ रहे हैं
नहीं देखना चाहते अर्ज़ों गिरिया नजा़रे वो ता हम नज़र आ रहे हैं
जो झुकते नहीं थे वही सर थे ऐ शाह वही सर तो अब ख़म नज़र आ रहे हैं
शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी
शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी