घर
कहाँ है मेरा घर
उस नगर या उस डगर
जाऊँ किधर…
भीड़ जुलूस
लाये तन्हाई
घर की कोई राह
नज़र ना आई
दिल की परवाज़ों में
खोया ख़ुद को
बिखर गया हूँ
इधर उधर
जाऊँ किधर..,
सूरज का जादू भी देखा
सब कुछ दीखे चाँद सरीखा
मंसूबों की ताली सीटी ने
जाल सजाया
पूजा की थाल सरीखा
चमकीली चाहों में फँसकर
भटका जीवन इधर उधर
जाऊँ किधर…
इस इन्द्रधनुष का छोर किधर है
अंधेरों का भोर किधर है
वो विवेक जो मन पर भारी
सारथी कहाय जीवन अधिकारी
किस बात का उसको डर है
सब कुछ बिखरा इधर उधर है
जाऊँ किधर…
कहाँ है मेरा घर…