घड़ियाल भी आँसू बहाता है
घड़ियाल भी आँसू बहाता है
नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज़ जाती है
जिसकी लाठी उसकी भैंस कहलाती है
आस्तीन का साँप भी होता है
और कौआ कान ले जाता है
मुख में राम बगल में छूड़ी
चांस मिले तो काटे मूड़ी
बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी
वह घड़ी कभी तो आएगी
हंस चुगेगा दाना – पानी
कौआ मोती खायेगा
यह सब अपने ही देश में होता है
जिस थाली में खाता है
उसी में छेद करता है
एक शुद्ध मूर्ख भी बात करता है
बिके हुए ज़मीर को तो
हर हक़ीक़त रंगीन दिखती है
क्या करें जिन्दा लाश चीखती है
कतारों में लगी अपनी रूह दिखती है
अब तो सफ़ेद चीज भी काली दिखती है
गंगाजी भी नाली दिखती है
तिजोरी तो भर गयी
अपनी जेब ख़ाली दिखती है
अनिल कुमार शर्मा
06/12/2016