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23 Mar 2022 · 1 min read

Geet

दिनाँक:- 28/02/2022

गीत

इतना क़रीब आके वो अब दूर हो गया।
शोहरत मिली ज़रा सी तो मग़रूर हो गया।।

मेरे ही गुलिस्तान से रंगत मिली जिसे।
रहने को सरजमीन और छत मिली जिसे।।
मिलक़त में बराबर का उसे हक़ मिला यहाँ।
इज़्ज़त मिली रूवाब भी बेशक़ मिला यहाँ।।
गुल वो ही गुलिस्तान को नासूर हो गया।
शोहरत मिली ज़रा सी तो मग़रूर हो गया।।

हमने लहू से ज़िस्म के सींचा किया जिसे।
हर एक इल्म और सलीक़ा दिया जिसे।
महफ़िल में अदब की उसे तरज़ीह दी मग़र।
गुस्ताख़ ने फ़रेब में ख़ुद फोड़ लो नज़र।।
अब बज़्म में कहता है कि रंज़ूर हो गया।
शोहरत मिली ज़रा सी तो मग़रूर हो गया।।

था फर्ज़ मेरा मैं ने निभाया हरेक पल।
क्या कर्ज़ उतारा कुफ़र ने ज़र्रा-ज़र्रा छल।।
उसमें न ऐक रेशा भी ईमान रह गया।
उस गोगरू से फट के गिरेबान रह गया।।
गैरों की निज़ामत में वो यूँ चूर हो गया।
शोहरत मिली ज़रा सी तो मग़रूर हो गया।।

बचपन से सलामत था मेरा दिल-ज़िगर मगर।
बख्तर की अलामत था मेरा दिल-ज़िगर मगर।।
शैतां भी मोच खा के दिखे लौटते हुये।
ठकरा के सर अपना वो ख़ुद ही नोचते हुये।
ऐसे न इसे तोड़ तू मशहूर हो गया।
शोहरत मिली ज़रा सी तो मग़रूर हो गया।।

✍🏾🌹🎋🌾🪴
नित्यानन्द वाजपेयी ‘उपमन्यु’

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 329 Views
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