गज़ल
कैसी समस्या है कि कोई हल नही निकलता
क्यों अर्जुन के तीर से भी जल नही निकलता
मै मुस्कुराकर ही अपने अश्क पोछ लेता हूँ
वो जब भी रोती है तो काज़ल नही निकलता
सारे जहाँ में हिन्दुस्तान से बेहतर और क्या है
नदिया बहुत है पर कहीं गंगाजल नही निकलता
बुझी राख से उजाले की उम्मीद ठीक नही
बबूल घिसने से कभी संदल नही निकलता
अमृत की बेकरारी बहुत है जहन में मगर
किसी के दिल का हलाहल नही निकलता
कोई तारा हो सकता था मै भी आसमां का
जाने क्यों तकदीर का मंगल नही निकलता
देखकर जिसे हर रात पूरणमासी लगती थी
वो हसींन चांद भी आजकल नहीं निकलता
@अनुराग ©