बात तो सच है सौ आने कि साथ नहीं ये जाएगी
क्यों गुजरते हुए लम्हों को यूं रोका करें हम,
उससे कोई नहीं गिला है मुझे
फिर क्यों मुझे🙇🤷 लालसा स्वर्ग की रहे?🙅🧘
सराब -ए -आप में खो गया हूं ,
अश्लीलता - गंदगी - रील
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
तुम्हें पाना, तुम्हे चाहना
पतझड़ और हम जीवन होता हैं।
यही चाहूँ तुमसे, मोरी छठ मैया
मुक्तक-विन्यास में एक तेवरी
खुद को खोल कर रखने की आदत है ।
*नेता टुटपुंजिया हुआ, नेता है मक्कार (कुंडलिया)*
गिरमिटिया मजदूर
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम