Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Apr 2020 · 4 min read

Friendship Twist…. By – Nitin Dhama

ये Love Story नहीं है l ये दो दोस्तों के बीच में Friendship Twist है और वे दो दोस्त हैं – दिशा और दक्ष
एक बार दक्ष अकेला एक पार्क में बैठा हुआ था और वो ये सोच रहा था कि क्या मेरी तरह ही सब अकेले हैं या फिर मैं ही कुछ ग़लत सोच रहा हूँ ?
तभी वो देखता है कि सामने एक लड़की बैठी हुई है जो हाथों में शायद एक डायरी लेकर बैठी थी l
दक्ष सोचता है कि यहां तुम अकेले बैठे सोच रहे हो कि तुम अकेले हो, लेकिन वो सामने जो लड़की बैठी है वो भी अकेली बैठी है लेकिन वो तो खुश दिख रही है।
दक्ष उस दिन घर जाकर यही सोचता रहता है कि मैं सच मे अकेला हूं या फिर कुछ ईर बात है।
जब वो अगली शाम पार्क में जाता है तो उसे वो लड़की वहीं बैठी दिखती है और रोजाना की तरह खुश नज़र आती है।
जब भी दक्ष पार्क मे जाता तो उसे वो लड़की हर बार इसी तरह खुश दिखती।
एक दिन दक्ष उसके पास जाकर कहता है:- क्या मैं आपके बराबर वाली जगह पर बैठ सकता हूं?

लड़की:- जी हां आप बैठ जाईये।

दक्ष सोच रहा था कि इससे ये पूछा जाए कि तुम इतने खुश कैसे रहते हो। खैर, दक्ष पूछ ही लेता है।
आप बुरा ना मानें तो क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हूं?

लड़की:- जी हां आप पूछ सकते हो।
दक्ष:- मैं कुछ दिनों से यहां रोज़ाना आ रहा हूं और आपको देखकर मुझे ऐसा लगता है कि आप अपनी life में एकदम खुश हैं।
खैर अभी ये छोड़िये, आप पहले आपना नाम बताईये अगर आपको बुरा ना लगे तो?

लड़की:- हाहा! मेरा नाम दिशा है और आपका?

दक्ष:- जी मेरा नाम दक्ष है।

दिशा:- आप मुझे सबसे पहले तो ‘जी’ के साथ बुलाना बन्द कीजिये।
हंसकर बोली, आप मुझे मेरे नाम से बुला सकते हैं।

दक्ष:- ठीक है तो आप भी मुझे मेरे नाम से बुलाईएगा और मैं भी आपको अपने नाम से।
दिशा:- ठीक है, जैसा अच्छा लगे।

इसी तरह दोनों काफी बातें करते हैं और कुछ ही दिनों में अच्छे दोस्त बन जाते हैं।

दक्ष कहता है:- जब मैंने तुम्हें यहां पहली बार देखा था तो उस दिन मैं काफी परेसान था और ये सोच रहा था कि मैं भी अकेला बैठा हूं ओर वहां तुम भी अकेले बैठे हो, लेकिन तुम खुश हो ओर मैं खुश नहीं हूं!

दिशा कहती है:- मैं अकेली रहूं या नहीं या ना रहूं, उससे मेरे खुश होने या परेशान रहने पर कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हम अपनी हर स्थिति में खुश रह सकते हैं।

कुछ समय बाद दिशा कहती है कि मैं अपने मामा जी के घर आयी हुई हूं और कल मैं अपने घर जा रही हूं तो तुम अपना ख्याल रखना और खुश रहना, ठीक है।

दक्ष:- ठीक है और तुम भी अपना ख्याल रखना ओर ऐसे ही खुश रहना।
इतना कहकर वे दोनों अपने – अपने घर की और चल देते हैं।

करीब एक साल होने को है और दक्ष ने अपनी B.Sc की पढ़ाई भी पूरी कर ली है और अब बस उसको ये इन्तज़ार रहता है कि कब उसकी वो दोस्त उससे मिलने आएगी?
दक्ष रोज़ाना शाम को उसी पार्क में जाता और दिशा का इन्तज़ार करते हुए कुछ कहानियां पढ़ता रहता और खुश रहता।
शाम का समय था और लगभग साढ़े 5 बजे थे ओर दक्ष वहीं पार्क में बैठा था तो पीछे से आवाज़ आती है- कैसे हो दक्ष?
दक्ष पीछे मुड़कर देखता कि दिशा पीछे खड़ी हंस रही है ओर तुरंत दक्ष दिशा के गले लग जाता है।

दिशा कहती है:- दक्ष में तुमको पहले तो ये बताना चाह्ती हूं कि मैं अपने मामा जी के घर नहीं आयी हूं। मैं यहीं रहती हूं। मैं रोज़ाना यहां आती थी और दूर से ही ये देखती थी कि तुम खुश हो या नहीं और तुम मुझे हर दिन खुश दिखे!
दक्ष ये सुनकर सोचता है कि दिशा ने झूठ क्यों कहा था कि मैं अपने मामा जी के घर आयी हूं!

दिशा कहती है:- तुम अब ये सोच रहे होंगें कि मैनें तुमसे झूठ क्यों बोला था। चलो मैं तुमसे कुछ पूछती हूं ओर तुम मुझे बताना।
पूछ्ती है:- तुम जैसे पह्के अकेले थे ऐसे ही अब तक अकेले थे तो तुम खुश क्यों थे?

दक्ष:- मैं इसलिये खुश था कि मैनें इस एक साल मे ये सोचा ही नहीं कि मैं अकेला हूं ओर रोज़ाना यहां आता ओर हवाओं को महसूश करता रहता।

इतना कहते ही दक्ष को अपने उस सवाल का जवाब मिल जाता है जो उसने पहले ही दिन दिशा से किया था।
इस दिन के बाद दक्ष और दिशा के बीच और भी अच्छी दोस्ती हो गयी और वे रोज़ाना उसी पार्क मे बैठने लगे और अपना समय एक साथ बिताने लगे।

लेखक – नितिन धामा
पता – जिला बागपत, यूपी – 250101

Language: Hindi
1 Like · 3 Comments · 283 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मन मूरख बहुत सतावै
मन मूरख बहुत सतावै
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
रात में कर देते हैं वे भी अंधेरा
रात में कर देते हैं वे भी अंधेरा
सिद्धार्थ गोरखपुरी
पावस
पावस
लक्ष्मी सिंह
औरत बुद्ध नहीं हो सकती
औरत बुद्ध नहीं हो सकती
Surinder blackpen
अस्मिता
अस्मिता
Shyam Sundar Subramanian
जय मां शारदे
जय मां शारदे
Mukesh Kumar Sonkar
तन से अपने वसन घटाकर
तन से अपने वसन घटाकर
Suryakant Dwivedi
बाल कविता: मोटर कार
बाल कविता: मोटर कार
Rajesh Kumar Arjun
सुनबऽ त हँसबऽ तू बहुते इयार
सुनबऽ त हँसबऽ तू बहुते इयार
आकाश महेशपुरी
रमेशराज की बच्चा विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की बच्चा विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
"अतीत"
Dr. Kishan tandon kranti
ঈশ্বর কে
ঈশ্বর কে
Otteri Selvakumar
बाढ़ का आतंक
बाढ़ का आतंक
surenderpal vaidya
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
अपनों के अपनेपन का अहसास
अपनों के अपनेपन का अहसास
Harminder Kaur
-- दिव्यांग --
-- दिव्यांग --
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
सवर्ण
सवर्ण
Dr. Pradeep Kumar Sharma
परिवार
परिवार
Neeraj Agarwal
एक नारी की पीड़ा
एक नारी की पीड़ा
Ram Krishan Rastogi
हिंदी दिवस
हिंदी दिवस
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
मजदूर
मजदूर
umesh mehra
मैं मगर अपनी जिंदगी को, ऐसे जीता रहा
मैं मगर अपनी जिंदगी को, ऐसे जीता रहा
gurudeenverma198
मेरी माँ
मेरी माँ
Pooja Singh
" जिन्दगी क्या है "
Pushpraj Anant
*पुस्तक समीक्षा*
*पुस्तक समीक्षा*
Ravi Prakash
संवेदना मर रही
संवेदना मर रही
Ritu Asooja
मात-पिता केँ
मात-पिता केँ
DrLakshman Jha Parimal
वक़्त बदल रहा है, कायनात में आती जाती हसीनाएँ बदल रही हैं पर
वक़्त बदल रहा है, कायनात में आती जाती हसीनाएँ बदल रही हैं पर
Sukoon
मैं उनके मंदिर गया था / MUSAFIR BAITHA
मैं उनके मंदिर गया था / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
झरोखा
झरोखा
Sandeep Pande
Loading...