Dheeraj
ऐसा कभी कभी क्यों होता है कि
सबके होते हुए भी यह जीवन ख़ाली ख़ाली सा लगता है
मन के किसी कोने मैं एक सूनेपन से डर लगता है
कहने के लिए सभी हैं इस दुनिया मैं
पर साथ रहते हुए भी होते हैं अपने कब
ये एक छलावा है जो जीवन के साथ चलता जाता है
फिर भी मनुष्य उसमें ही सुख समझता रहता है
कहने को पराया कोई नहीं सब अपने है
किंतु इस संसार मैं कोई किसी का नहीं
फिर भी इस जीवन को चलाना ही होगा
जग मैं आयें हैं तो इसको निभाना ही होगा
करनी होगी सबकी आशाएँ पूरी
क्योंकि यह भी है ज़रूरी
ना चाहते हुए भी सब कार्य करने पड़ते हैं
समाज मैं रहने के लिए सारे धरम निभाने पड़ते हैं
इसलिए मन तू ढेर धार और सभी कार्य पूरे कर
एक दी ऐसा आएगा ये संसार तेरा पार पाएगा
मानेगा सभी तेरी बातें ,दूर होंगी तेरी सभी घातें
दुश्मनों के सारे मनसूबे धरे रह जाएँगे तब
हम अपनी मंज़िल पास जाएँगे
इसलिए ही मन धीर धर धीर धर धीर धार