चंद दोहे बारिश पर…
मलिनता सारी हर ले, बारिश की बौछार।
मन-गंगा निर्मल बहे, तर जाएँ नर-नार।।१।।
जिस अदने वायरस ने, छीने होश-हवास।
अबकी बारिश जल मरे, जैसे आक-जवास।।२।।
वर्षा जीवन-दायिनी, तप्त धरा की आस।
सकल चराचर जगत की, बुझती इससे प्यास।।३।।
पानी बिन जीवन नहीं, वर्षा जल की खान।
बूँद-बूँद संग्रह करो, इसका अमृत जान।।४।।
परहित घन वर्षा करें, दें जग को बिन मोल।
बूँद-बूँद संचित करो, वर्षा – जल अनमोल।।५।।
-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)