College ke jamane se
कॉलेज के जमाने से-कोमल काव्या
ये सोच के रखा है कॉलेज के जमाने से
जब मिला था तुमको सुकून मेरा दिल दुखाने से ।
चाहत की उममएडोन से अच्छा तन्हा ही रहा जाए
दिल खोल के कहना है नगमों मे कहा जाए
में टूट के बरसी थी भूली सी कहानी मे
एक बांध गिरा होगा दरिया की रवानी मे
बातों से अकेले वो दिल लूट के जाता था
पत्थर ही रहा खुद वो जो मोम बनाता था
उस आग की झुलसन से दिल क्यूँ न पिघल जाता
लोगों के बताने से ये काश सम्हल जाता
फुरसत ही नहीं मिलती अब आँसू को सुखाने से ।
ये सोच के रखा है कॉलेज के जमाने से ।
घंटों बैठे रहते हम बात किया करते
एक ही कप की आधी आधी चाय पिया करते
लाइब्रेरी मे तेरा वो मुझसे टकराना
और हाथ मिलाने को वो मेरा कतराना
बहाते थे दिलों को तब वो कच्ची उम्र के खेल
किसको चिंता इसकी की पास हुए या फेल
खत मे करना शामिल शायर की रुबाई को
फिर सिहर उठी है वो थामी थी कलाई जो
छुटकारा नहीं मिलता उस रोग पुराने से ।
ये सोच के रखा है कॉलेज के जमाने से ।
मासूम मोहब्बत है क्या अजब रिवायत है
इसकी नाकामी से सबको ही शिकायत है
ये खून ए जिगर मांगे चाहत का हुनर मांगे
एक दिन का नहीं यारों सदियों का सफर मांगे
हर कदम पे कांटे हैं ये बाग अनोखा है
खुलता नहीं सबके लिए कैसा ये झरोखा है
रह कर के अधूरी खुद ये पूरी कहानी है
जो पता जमाने को वही बात छुपानी है
भूले से नहीं भूले जितना भी भुलाने से
आराम नहीं मिलता कोई दवा लगाने से ।
ये सोच के रखा है कॉलेज के जमाने से
जब मिला था तुमको सुकून मेरा दिल दुखाने से ।