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30 Sep 2022 · 28 min read

Can I hold your hand

Can I hold your hand ? Hindi story – Komal Kaavyaa

शेखर के फोन पर दो संदेश आए थे । थोड़ी देर बाद उसने संदेश पढ़े,” मैं अहमदाबाद में हूँ ,कल ही आई हूँ।” पाखी ने लिखा था । उससे रहा न गया । उसने तुरंत फोन मिलाया । इतना बड़ा सप्राइज़ ? पहले क्यूँ नहीं बताया ? कहाँ पर हैं आप ? पाखी शेखर के लगातार सवालों पर मुस्कुराये बगैर न रह सकी । मैं अपनी मौसी की बेटी की शादी मे आई हूँ । अचानक आने का प्रोग्राम बना इसलिए कोई सूचना नहीं दी आपको । उसने सफाई पेश की । शेखर गंभीर होकर बोला , तो मैं आ सकता हूँ आपसे मिलने ? पाखी हंसी , बिन बुलाए मेहमान । वह चुप हो गया , फिर धीरे से बोला , अच्छा बताइए , आपको कहाँ से पिक करूं? मिलना मुश्किल है ।उधर से आवाज आई । नामुमकिन तो नहीं , शेखर ने हक जताते हुए कहा । आस-पास बहुत लोग हैं , सबको जवाब देना होगा । पाखी कातर स्वर में बोली । शेखर ने कहा , आपसे मिलना चाहता हूँ , क्या आप मुझसे मिले बगैर जा सकेंगी ? बिना उत्तर की प्रतिक्षा किए उसने फोन रख दिया। दो घंटे बाद पाखी ने शेखर को फोन किया । मैं जानता था आप फोन जरूर करेंगी । बताइए, कहाँ से पिक करना है आपको ? पाखी मुस्कुराते हुए बोली , आप अंतर्यामी हैं मगर आज नहीं , आज शाम तो संगीत है और कल शादी , परसों सुबह आपको ठीक-ठीक बता पाऊँगी ।

दो दिन दोनो के लिए पहाड़ से गुजरे । फिर वो सुबह भी आई जिसका दोनों ने एक साल से इंतजार किया था । एक कॉमन सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर दोनों का परिचय हुआ था फिर दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे । अपने तमाम सुख-दुख दोनों एक दूसरे से शेयर करते और इसी तरह उनकी मित्रता पटरी पर दौड़ रही थी । शेखर की दो बहनें थी , पिता का निधन उसके बचपन में ही हो गया था सो परिवार की जिम्मेदारी उसने बड़े होने से पहले ही संभाल ली और वह एक फुट्वेर शॉप का मालिक हो गया था। फिर बहनों की शादी करवाने का कर्तव्य भी उसने बखूबी निभाया था और अब दोनों बहने और मां उसे लगातार शादी करने को मजबूर कर रही थी। इधर पाखी का विवाह हुआ तो अच्छे घराने में था, मगर केवल एक वर्ष होने से पहले उसके पति की हत्या लूट-पाट के मकसद से कर दी गई और ससुराल मे सबकी आँखों का कांटा बनते उसे देर न लगी । अब वह पिछले तीन बरस से अपने मां-पिता के साथ रह रही थी । मनहूस का लेबल उस पर चिपका दिया गया था, हमारे सभ्य समाज के द्वारा । फिर बड़े भाई को दिल का दौरा होने से आकस्मिक मृत्यु , विधवा भाभी अपने तीन वर्षीय बेटे को लेकर मसूरी रहने चली गई जहां उन्हे एक कान्वेन्ट स्कूल में नौकरी मिल गई थी और देहरादून में पीछे रह गए पाखी, उसका पंद्रह वर्षीय छोटा भाई ,और वृद्ध माता -पिता।

इम्तिहान में बैठ उसे भी केन्द्रीय विद्यालय मे एक अच्छी नौकरी मिल गई । जिससे जीवन सुचारु रूप से चल सके । बीते कुछ सालों में पाखी ने शेखर के अलावा कोई और दोस्त बनाया ही न था, शायद इसकी मुख्य वजह शेखर और पाखी का गंभीर एक जैसा स्वभाव और जीवन की उलझनें थी । शादी का कार्यक्रम जैसे ही खत्म हुआ उसने शेखर को फोन मिलाया , उसने मां से यह कहकर अनुमति ली थी की उसकी एक सहेली है जिससे मिलने वह जाने वाली है इसका भाई उसे लेने आएगा । आज सुबह से ही शेखर उसके फोन के इंतजार में था , मगर वह बार बार खुद को फोन करने से रोक रहा था । आखिर पाखी उससे मिलना चाहती है भी या नहीं ? hello, , पाखी का स्वर आया। तो मिल गई फुरसत आपको ? शेखर ने शिकायत भरे स्वर में कहा। हाँ , आज सुबह ही दुल्हन की विदाई हुई है । पाखी बोली । अच्छा बताइए , कहाँ से पिक करना है आपको ? शेखर हँसते हुए बोला। हो सकता है मैंने गुड बाय कहने के लिए फोन किया हो । पाखी शरारत से बोली । शेखर बोला , अच्छा , ये नाटक रहने दें , कहाँ से पिक करना है आपको ? आनंद नगर से,पाखी ने कहा , वहाँ आर्य समाज मंदिर के बगल मे मेरी मौसी का घर है । शेखर ने फोन रख दिया बिना एक शब्द बोले ।

उसकी यही खामोशी पाखी के दिल मे कहीं गहरे , दफन होकर रह जाती थी । शेखर ने उतरकर कार का दरवाजा खोला , पाखी खामोशी से उसी बगल वाली सीट पर जा बैठी । वह ड्राइव करता जा रहा था । एक जगह उसने गाड़ी खड़ी की फिर पाखी की तरफ ध्यान से देखने लगा । यहाँ क्यूँ गाड़ी रोक दी ? पाखी ने असमंजस से पूछा । शेखर मुस्कुराया, आपको जी भर कर देख तो लूँ, और फिर बातें भी तो करनी है ढेर सारी । पाखी झेंप गई । आज उसने नेवी ब्लू कलर की बड़े बड़े फूलों के प्रिन्ट वाली साड़ी पहनी हुई थी जिस पर उसके अधखुले लंबे बाल , माथे पर छोटी सी बिंदी शेखर को मुग्ध कर रहे थे । वह चाह कर भी उस पर से नजरें हटा नहीं पा रहा था । एकाएक पाखी ने उसे स्थिर नजरों से देखते हुए कहा , अगर आप इस तरह देखेंगे तो बात करना मुश्किल होगा । शेखर हंस पड़ा ।” आपको मेरे देखने पर भी ऐतराज है। ऐसे खूबसूरत चेहरे रोज रोज थोड़ी देखने को मिलते हैं ।” पाखी मुस्कुराई । मगर वह अपलक उसे देख रहा था। फिर उसने बहुत हिम्मत जुटा कर कहा। Can I hold your hand ? पाखी क्या कहे वह समझ नहीं पा रही थी । शेखर ने फिर दोहराया । पाखी , Can I hold your hand ? उसके चेहरे का भाव पाखी के दिल में मोम की तरह पिघल रहा था । वह कुछ न कह सकी , शेखर ने नरमी से उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया, फिर दोनों के बीच की खामोश हवाएं संगीत बनकर लहरा रही थी । कहाँ चलना है ? बताइए । शेखर ने उसका हाथ अपने हाथों मे थामे हुए पूछा । कहीं भी , जहां कुछ देर बैठकर बातें की जा सके । पाखी दबे स्वर मे बोली , अभी भी वह असहज महसूस कर रही थी । शेखर ने जैसे समझकर उसका हाथ छोड़ दिया और गाड़ी चलाने लगा। शेखर का गाया एक एक गीत जो पाखी के पसंदीदा थे एक एक कर प्ले हो रहे थे। ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना। ।
कुछ ही दूर पर शेखर ने एक पार्क के किनारे गाड़ी रोकी और पाखी को इंतजार करने को कहकर कहीं चला गया । जब वह वापस आया तो उसके हाथों मे एक बुके था जिसे उसने पाखी की गोद में लाकर रख दिया । आपके लिए आपके जैसे गुलाब , उसने शोखी से कहा । गुलाबों की महक और उनकी नरमी से पाखी और अच्छा महसूस करने लगी थी । आज का दिन वह हरदम याद रखेगी , सोचते हुए उसने शेखर को कृतज्ञता से देखा । फिर दोनों पार्क की तरफ बढ़े और एक बेंच पर जाकर बैठ गए । शेखर उसके लिए जूस लेकर आया था । पेड़ की ठंडी छाया और शेखर का साथ उसके लिए जैसे स्वप्न सरिका था । शेखर भी न जाने कब से पाखी से मिलने को बेचैन था मगर उसे उम्मीद नहीं थी की वो कभी ऐसे भी मिलेंगे । उसने फिर पाखी की आँखों मे आँखें डालते हुए कहा , तो मैडम , Can I hold your hand ? पाखी फिर विचलित हो उठी । शेखर का स्पर्श और उसकी बातें उसके दिल मे जाने कैसा एहसास भर देती थी । वह अब मुस्कुरा रही थी । शेखर ने फिर शरारत भरे अंदाज मे पूछा । Can I hold your hand ? उसके इस अंदाज पर वह मुस्कुराये बिना न रह सकी । हाँ बाबा। अब दोनों थोड़ा सहज महसूस कर रहे थे । अच्छा बताइए , घर चलेंगी? , उसने पूछा। पाखी सोच में डूब गई , उसे शेखर के यहाँ जाना चाहिए भी या नही ?लेकिन आप घर पर क्या कहेंगे , उसने प्रश्नवाचक दृष्टि से शेखर को देखा। शेखर ने कहा , मां के अलावा घर पर कोई नहीं , और वो बहुत अच्छी हैं , आपसे मिलकर बहुत खुश होंगी । शेखर उसे यकीन दिलाता हुआ बोला। पाखी ने स्वीकृति मे सर हिलाया । वह शेखर के बिल्कुल नजदीक बैठी थी । तभी उसने कहा, आप मुझ पर इतना भरोसा नहीं करती न ? ऐसी तो कोई बात नहीं , अगर ऐसा होता तो आपके साथ अनजाने शहर मे यूं ही चली आती क्या ? मैंने आपको वही समझा है जो आप हैं । वह शेखर की उंगलियों से खेल रही थी । शेखर को पाखी का यह भरोसा अंदर तक छू गया, वह बोला। आप जानती हैं आपके सिवा मेरा कोई दोस्त नहीं जिसे मैंने अपने दिल की बात कही हो , लेकिन पता नहीं क्यूँ, आपसे सब कुछ कह जाता हूँ और आपके सामने इतना खुल कर व्यवहार करने लगता हूँ, जबकि सब घर में मुझे shy कहते है । तब तो मैंने आपको काफी सुधार दिया है , पाखी हंसी । अच्छा , अब घर चलें थोड़ी देर बाद शेखर उठा। पाखी भी शेखर के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहती थी, जाने ये पल फिर उसे मिले न मिले। दोनों मन ही मन दुआ कर रहे थे की ये पल यहीं रुक जाए । पर रात होने से पहले पाखी को वापस भी लौटना था इसलिए वह तेज कदमों से शेखर के पीछे जाकर कार मे बैठ गई । आपकी मम्मी को मेरे बारे मे क्या बताएंगे ? उसने पूछा । उन्हे पहले ही बता रखा है की आप मेरी अच्छी दोस्त हैं और देहरादून से आईं हैं । वो तो सुबह से आपके लिए पूछ रहीं थी । पाखी आशंकित होकर बोली , एक बात कहूँ ? उन्हे मेरे बीते जीवन के बारे मे नहीं बताइएगा। वो क्या सोचेंगी । शेखर ने बात की गंभीरता को समझते हुए उसका समर्थन किया। मैंने इस बात की चर्चा उनसे नहीं की है , मैं नहीं चाहता की कोई हम दोनों के बीच के रिश्तों को गलत नाम दे। उसने पाखी के हाथ पर अपना हाथ रख दिया और उसे गुदगुदाने लगा। पाखी मुस्कुरा उठी, मुझे नहीं पता था आप इतने अच्छे होंगे मैं सचमुच लकी हूँ की मुझे आप जैसा दोस्त मिला । शेखर बोला , जानती हैं, आप मेरी दूसरी दोस्त हैं जिसे मैं घर लेकर जा रहा हूँ इससे पहले कॉलेज मे मेरी एक class fellow थी और मैं उसे चाहता भी था मगर वह कई लड़कों से engage थी, इसका पता मुझे बाद मे चला । आप क्या उससे शादी करना चाहते थे? पाखी ने ध्यानपूर्वक शेखर के चेहरे पर आते-जाते भावों को देखा जैसे उसकी उदासी का रहस्य समझने का प्रयत्न कर रही हो।

सामने मंजिल थी, जब शेखर ने मकान के पहुंच में अपनी गाड़ी दाखिल की तो पाखी का ध्यान टूटा । वह आँचल और पर्स संभालते हुए कार से बाहर निकल आई । फिर दो तीन सीढ़ियाँ चढ़ते ही उसे शेखर की मां दिखाई पड़ी जो कार के रुकने की आवाज सुनकर दरवाजे तक चली आई थी । पाखी को देख उन्हे पहली बार मे ही भला मालूम हुआ था, इसलिए वह उसे अपने साथ ही बिठाकर अनगिनत बातें करती रहीं । ”घर मे कौन कौन हैं?” उन्होंने पूछा , उसने बाकी सब तो ठीक-ठीक बता दिया मगर वह बड़े भाई और अपने विधवा होने की बात जबान पर ला न सकी । शेखर ने उसे पानी का गिलास थमाया और आँखों-आँखों मे सहज शांत बने रहने का भरोसा दिया। एक अजीब सा खिंचाव था उसकी आँखों मे, पाखी देखती तो देखती रह जाती और शेखर, वह जब भी पाखी की हिरनी जैसी आँखों मे खुद के लिए कोई एहसास खोजने की कोशिश करता तो खालीपन के सिवा कुछ दिखाई नहीं देता। कितनी ही बार उसने पाखी से कहा था की आपकी हंसी tasteless है ।
चलिए ,आपको अपना कमरा दिखाऊँ , कहकर उसने पाखी और मां की बातचीत का क्रम तोड़ा। मां के अनुरोध करने पर पाखी शेखर के साथ मकान देखने लगी फिर शेखर सीढ़ियों की तरफ मुड़ गया।” तो आप ऊपर की मंजिल पर रहते हैं”, उसने पूंछा फिर उसके पीछे- पीछे चलने लगी। कमरा काफी बड़ा था और उसका दरवाजा एक हाल में खुलता था। एक डबल बेड ,थोड़ा फर्निचर और एक शेल्फ पर साउन्ड सिस्टम लगा हुआ था। वह यहाँ आकर वहीं एक किनारे पर बैठ गई । ”आपका कमरा वाक़ई में बहुत आकर्षक है “, उसने तारीफ में कहा। अब वह शेखर के साथ बिल्कुल घर जैसा महसूस कर रही थी और शेल्फ पर राखी किताबों को ध्यान से देख रही थी । ”मुझे लगा आपका किताबों से कोई वास्ता नहीं है।” शेखर मुस्कुराया, “आपसे किसने कहा की businessman किताबें नहीं पढ़ते ।” पाखी घूमते-घामते उसके कमरे की बालकनी में पहुच गई थी । अनेक फूलों के गमले वहाँ कतार मे सजे हुए थे। फिर उसकी नजर पिंजरे मे किलकते मिट्ठू पर पड़ी। वह भी उसे देख और किलकने लगा था। क्या बात है! और कितने सिक्रेट (secret) हैं आपके? वह शेखर को छेड़ रही थी। अरे नहीं ,” पहले यह कमरा सुमन दीदी और सुरभि का था, उन्होंने ही इसे पाला है और ये सब पौधे भी उन्होंने ही लगाए हैं । मेरा तो सिर्फ एक साउन्ड सिस्टम है जो मैंने खुद खरीदा है वो भी गानों के शौक के लिए। अच्छा , क्या ये बोलता भी है? पाखी बच्चों की तरह मचल कर पूंछ रही थी । वह उसके नजदीक आता हुआ बोला , इसका नाम हरी राम है , पाखी पिंजरे के पास होती हुई बोली , हरी राम, “पाखी”, पाखी बोलो न। हरी राम किलकता हुआ शोर मचाने लगा।” चेकर चेकर”। पाखी ताली बजाकर हंसने लगी। शेखर का मन इस उन्मुक्त और निर्मल हंसी से जाने अनजाने बंधने सा लगा था। साँझ के रक्तिम प्रकाश में वह पाखी से अपने दिल का हाल बयान कर देना चाहता था मगर कुछ था जो उसे रोक रहा था । पर कहते हैं न जिन्हें मिलना होता है वो लाख बाधाओं के बावजूद भी मिल ही जाते हैं। उसने पाखी को एक गहरी निगाह से देखते हुए कहा Can I hold you hand? पाखी!! उसके स्वर में प्यार की जो गहराई थी पाखी ने इस बार सही मायनों मे अनुभव किया। वह उसकी तरफ देखने का साहस न जुटा सकी । उसके कुछ कहने से पहले ही शेखर मजबूती से उसके दोनों हाथ थाम लिए थे। पाखी को एकाएक अपने पति की याद हो आई , जिन आंसुओं को वह शेखर से छुपाना चाहती थी, वही उसकी आँखों मे काली घटा की तरह घिर आए। वो अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, नहीं शेखर , हमारे रिश्ते का कोई भविष्य नहीं । आप!!! कहते कहते वह रो पड़ी और उसके शब्द उसके गले मे ही अटक कर रह गए। वह उसे अंदर कमरे में ले आया। पाखी खुद को संभालना जानती थी , इन दो बरसों ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया था। वह शेखर के सामने कमजोर नहीं होने देगी अपने को, यह सोचकर उसने खुद ही अपने आँसू पोंछ लिए । पाखी के शांत होने पर उसने कहना शुरू किया, आप मुझ पर इतना तो भरोसा कर सकती हैं की अपने दुखों को मेरे साथ शेयर कर लें या फिर मुझे अपना दोस्त न कहें। उसे पाखी के रोने पर सख्त ऐतराज हुआ था, अगर आप फिर कभी रोई तो मैं आपसे बात नहीं करूंगा। मैं आपके चेहरे पर खिलखिलाती हुई हंसी देखना चाहता हूँ। उसने पाखी के दोनों हाथ उसके चेहरे से हटाए। उसके माथे की बिंदी अपनी जगह से हट गई थी , शेखर न बिंदी को ठीक जगह लगाया तो पाखी असहज हो उठी। शेखर जैसे समझकर बोला , अच्छा मैं जरा अभी आता हूँ तब तक आप गाने सुनिए। उसने म्यूजिक सिस्टम ऑन कर दिया और फिर गाना बजने लगा। (तुमसे बढ़कर दुनिया में न देखा कोई और जुबां पर आज दिल की बात या गई ।) शेखर के गीत ही उसकी भावनाओं को व्यक्त करते थे। पाखी ने आज भी यह महसूस किया था की जो कुछ वह कहना चाहता था, उसे गीतों के माध्यम से ही कहने की कोशिश करता था। मैं भी चलूँ? उसने पूछा । नहीं , मां चाय बना रही होंगी , मैं अभी आ जाऊंगा। वह चला गया। पाखी फिर उसकी शेल्फ के पास जा खड़ी हुई । उसने दराज खोली, और खुद ही लज्जित हो उठी, शेखर देखेगा तो क्या सोचेगा । तभी उसे एक लाल डायरी दिखी । वह डायरी निकाल पलंग पर जा बैठी । पहले पन्ने पर लिखा था , उसकी याद में जो मुझसे खो गया । वह पन्ने पलटने लगी। कुछ पन्ने फटे हुए भी थे शायद तीन-चार साल पुरानी डायरी थी। उसे याद हो आया , कॉलेज के दिनों मे वह भी तो डायरी लिखा करती थी । एक पन्ने पर बड़े अक्षरों में लिखा था, आईने मेरी उदासी का मजाक मत बनाओ।। में रोता नहीं मुझे मजबूरियां रुलाती हैं ।
उसने डायरी वापस दराज में रख दी और सोचने लगी, कभी शेखर से पढ़ने मांग लूँगी । आज उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था आखिर शेखर के प्यार को वह चाह कर भी क्यूँ स्वीकार नहीं कर पा रही है। शेखर तेज कदमों से गुनगुनाता हुआ ऊपर आ रहा था। जब वह कमरे में घुसा तो उसके हाथ मे एक पैकेट और एक ट्रे थी। उसने ट्रे को साइड टेबल पर रख दिया और एक पैकेट पाखी की गोद मे डाल दिया। ये लीजिए आपका favourite, “Wow!!. bingo mad angles!!” पाखी ने पैकेट उठाया । आपको याद है? वह पैकेट खोलकर तुरंत खाने लगी । शेखर सामने बैठ गया । एक और चीज है, उसने कैडबरी निकाली और उसके सामने पूरा box खोलकर रख दिया। इतनी सारी ,कौन खाएगा? आप। और कौन, शेखर हँसते हुए बोला । मुझे पता है आपको chocolates कितनी पसंद हैं। पाखी अभी भी बच्चों की तरह आवाजें करके बिंगो खाने मे जुटी थी । शेखर ने उसके हाथ से पैकेट लेकर कहा, इसे बाद मे खाना। पहले समोसे खाइए, मां ने मंगवाएं हैं आपके लिए। वो घुटनों के दर्द की वजह से ऊपर नहीं चढ़ सकती सो मुझे खास instruction है की आपकी खातिरदारी ठीक तरह से करूं। पाखी ने समोसे की प्लेट सामने रखते हुए शेखर से खाने का अनुरोध किया । शेखर ने एक टुकड़ा लिया और पाखी को खिलाने लगा, दोनों के बीच फिर एक गहरी खामोशी पसर गई। पाखी ने भी शेखर को खिलाया । अब पाखी का एक हाथ फिर शेखर के हाथ मे था। में खा लूँगी। उसने सिर झुकाए हुए कहा। जानता हूँ की आप समर्थ हैं, अपना खयाल खुद रख सकती हैं। पर आज मैं आपके साथ हूँ , वह पाखी के पारदर्शी चेहरे पर नजरें गड़ाए बार-बार उसके मना करने पर भी खिलाए जा रहा था। उसने देखा, पाखी का चेहरा आंसुओं से तर हो चला है । उसने प्लेट उठाकर टेबल पर वापस रख दी । अब दोनों ठीक आमने-सामने करीब थे। शेखर की साँसे पाखी को छु रही थी । उसने कहा, हमे मिलना नहीं चाहिए था । शेखर व्यंग्य से हंसा, ताकि आपका दर्द कभी कम न हो। अगर आपको रोना ही है तो मेरे सीने से लगकर रो सकती हैं। उसने पाखी को अपने सीने से लगा लिया । न जाने कितने लम्हों तक दोनों एक दूसरे को महसूस करते रहे फिर शेखर बोला, जो बात आप जानती हैं मैं अगर वही बात कह दूँ तो क्या आप भी वही कहेंगी जो आपके दिल में हैं?उसने पूंछा । पाखी बोली, आप नहीं तुम कहिए। शेखर ने उसका माथा चूमा और फिर उसकी बिंदिया चूमते हुए कहने लगा, जब तक शादी नहीं करती तब तक आप ही कहूँगा। मेरी आपकी शादी आसान नहीं है ,घर मे मैं क्या कहूँगी की मैं इतनी स्वार्थी हूँ की अपने सुख के लिए उन्हे छोड़कर एक नई दुनिया बसाना चाहती हूँ। शेखर बड़ी गंभीरता से बोला , तो आप समझती हैं की मैं आपके परिवार का ख्याल नहीं रखूँगा। मैं ऐसा बिल्कुल नहीं कह रही हूँ, लेकिन आपको पता है की मेरे मां पिताजी पुराने विचारों के लोग हैं और आपकी मां और बहनें कभी किसी कीमत पर मुझे अपने घर की बहु के रूप मे स्वीकार नहीं करेंगी। कुछ लोग तो ये भी कहते है की मेरे मनहूस होने की वजह से ही मेरे पति और मेरे भाई की मृत्यु हुई है। यहाँ तक की भाभी भी मुझे अपना दुश्मन समझती हैं। तभी तो वह हमे छोड़कर अलग हो गई हैं। शेखर ने उसे सांत्वना देते हुए कहा , मैं इन सब बातों का घोर विरोधी हूँ । उसने फिर पाखी को सीने से लगा लिया। दोनों खामोश एक दूसरे की बाहों मे जीवन के सपने बून रहे थे। शेखर के होंठ पाखी के गालों को सहला रहे थे और पाखी जैसे अपनी सुध – बुध खो बैठी थी। शेखर लगातार उसकी पलकों और उसके चेहरे पर अपनी चाहत के निशान बनाता जा रहा था । मैं आपसे बेहद प्यार करता हूँ। वह खुद को रोक नहीं पा रहा था। उसके आँसू पाखी को व्यथित कर रहे थे। मैं आपके सिवा किसी से शादी नहीं करूंगा। पाखी बहुत खुश थी , एक बार तुम कहिए। वह शादी के बाद ही कहूँगा, शेखर मुस्कुराया। पाखी ने भी मुस्कुराने की कोशिश की , मैं आप से तुम होना चाहती हूँ। अब शेखर खुद पर से अपना नियंत्रण खो चुका था। पिछले एक साल में उसने पाखी को चाहने के अलावा दूसरा कोई काम नहीं किया था जिससे उसे खुशी मिले। मगर पाखी की झिझक उसे कुछ भी कहने से रोक देती थी और वह शायद इसी दिन के सपने बुनता रहता था। पाखी के मन मे भी उसके प्रति गजब का खिंचाव था जिसे पाखी ने भीतर ही भीतर दबा कर रखा था। शेखर के प्यार का नशा उसकी रूह में उतरने लगा था। उसके होंठ जैसे उसके अंदर के जख्मों पर दवा से छिड़कते मालूम हो रहे थे । लम्हों की ऐसी अंतरंगता दोनों को अपनत्व के शिखर पर ले गई थी और सारे फासले मिट गए थे। पाखी ने भी शेखर से अपनी भावनाओं का इजहार कर दिया था। रात हो चुकी थी और पाखी को जल्द से जल्द घर पहुचना था। वह उठ खड़ी हुई। आईने के सामने वह अपनी सारी का आँचल ठीक कर रही थी । उसकी बिखरी जुल्फें उसके गालों को छू रही थी । एक बार इधर देखो , शेखर उसकी तस्वीरें कैमरे मे कैद करता हुआ बोला । कभी उसे सामने बिठाकर कभी बालकनी में ले जाकर और कभी अपने सिस्टम के पास उसने कितनी ही तमाम तस्वीरें खींच डाली थी । एक सेल्फ़ी लेना चाहता हूँ । पाखी उसके नजदीक थी , उसे लगा शेखर के साथ यह उसकी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत तस्वीर है । मुझे यह जरूर भेजिएगा , उसने कहा, फिर एक गहरी ठंडी सांस ली। अब दोनों को अलग होना ही होगा। दरवाजे पर शेखर ने एक बार फिर उसे गले लगाकर आश्वस्त किया की वह किसी भी तरह दोनों की शादी का कोई न कोई रास्ता निकालेगा। जब पाखी उसके सामने नतमस्तक हुई तो वह फुट-फुट कर रो पड़ा। किसी तरह दोनों एक दूसरे को दिलासा दे मां के सामने जा सके थे। पर देर होने की बात कह पाखी मां के पैर छूकर बाहर की तरफ बढ़ गई। शेखर ने रास्ते मे एक शॉपिंग सेंटर के सामने कार रोकी और पाखी को उतरने को कहा। आपको कुछ शॉपिंग करवा दूँ , उसने कहा। लेकिन मुझे कुछ नहीं खरीदना, पाखी सफाई पेश करती सी बोली। पर शेखर की निगाहों मे जाने क्या था की वो चुपचाप कार से बाहर निकल आई । कई साड़ियां देखने के बाद शेखर को एक मेहरून रंग की कढ़ाई की गई साड़ी पसंद आई जिसे उसने पाखी के लिए पैक करवाया । फिर वह उदास हो उसी खामोशी से उसे उसी जगह पहुंचा आया जहां से उसने चंद घंटे पहले उसे पिक किया था। मगर इन चंद घंटों ने दोनों के जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल कर रख दी थी।

कयामत की रातें कैसी होती होंगी , इसका अनुमान शेखर को पहली बार हुआ था। पाखी से मिलकर अनिश्चित काल के लिए अलग होने की विवशता ने उसके अंदर के अकेलेपन को और बढ़ा दिया था। इधर पाखी के सूने जीवन मे एक उजली किरण गहन अंधकार को हटाने के लिए प्रयासरत हो रही थी। एक तारा उसे मंजिल का रास्ता दिखा रहा है, उसने सोचा । मेरे उस तारे का नाम शेखर है , वह लजा उठी । अगले दिन उसकी वापसी थी। उसने शेखर को सुबह ही बता दिया था की आज वो चली जाएगी। रेल्वे स्टेशन के भीड़-भाड़ भरे वातावरण में उसकी आँखें किसी को खोज रही थी , तभी उसने शेखर को देखा। वह एक बुक स्टॉल के पास खड़ा उसे न जाने कब से देख रहा था और उसकी निगाहें ठहर गई। जाने उन आँखों में कैसा निमंत्रण था कैसा आवेग की उसके पूरे तन में झुरझुरी दौड़ गई । आज वो शेखर से बिछड़ जाएगी । नहीं, ऐसा नहीं होगा, उसने खुद को दिलासा देते हुए कहा। माँ से कहकर वह कुछ खरीदने के बहाने वहाँ पहुंची जहां शेखर उसके इंतजार मे खड़ा था। मेहंदी रंग की सारी में वह उसे बेहद भाई थी। दोनों ने धीरे-धीरे कुछ बातें की और आपस मे एक दूसरे को सांत्वना दे विदा ली । घर जाते ही मां से आपके बारे में कहूँगा, उसने दृढ़ता से कहा। अंतिम बार उसने किसी तरह लोगों की नजर बचाकर पाखी का हाथ थामा था और अपना एहसास फिर उसकी रूह पर अंकित कर दिया था। ट्रेन चली गई थी और पीछे छूट गई थी यादें, यादें और सिर्फ यादें। कौन कहता है की फासले प्यार को कम करते हैं। पाखी और शेखर का प्यार दिन पर दिन उफान पर था सागर में उठते हुए किसी ज्वार की तरह। भविष्य के लिए कितनी कल्पनाएं कर डाली थी दोनों ने । जब से पाखी को शेखर की माताजी ने देखा था तब से वह एक आदर्श बहु के रूप मे उनके मन मे बस गई थी । शायद यही वजह थी की वो बार बार दोनों बेटियों से पाखी का जिक्र किया करती और सुमन दीदी ने तो छोटे भाई के लिए रिश्ता भेजने का भी निश्चित कर लिया था। शेखर बहुत बार सोचता की वह सभी को पाखी के अतीत के बारे में बताए पर फिर वह दोनों बहनों के रक्षा बंधन में आने का इंतजार करने लगा। मां को भी वह कोई टेंशन नहीं देना चाहता था। छोटी बहन सुरभि पहले ही आ गई थी और उसने पाखी की बात पूंछ- पूंछ कर भाई का उठना बैठना दूभर कर दिया था। उसके फेस बुक से उसने पाखी की प्रोफाइल पिक भी देख ली थी । सुमन के आ जाने पर शेखर ने कुछ भी न छिपाते हुए उसके पति और भाई की आकस्मिक मृत्यु की बात परिवार को बता दी थी मगर मां तो जैसे क्रोध से लाल हो उठी थीं, और जिस पाखी को उन्होंने दिल में बसा रखा था उसी को उन्होंने दो पल मैं ही अपने परिवार का जानी दुश्मन समझ लिया और दोनों बहनें भी शेखर के विरोध मे खड़ी हो गई थी। ससुराल मे हम क्या जवाब देंगी, यह कहकर उन्होंने मां को और असंवेदनशील बना दिया था। जब शेखर बिना किसी रिश्तेदार के पाखी के घर देहरादून पहुंचा तो पाखी के माता पिता भी बड़ी कश्मकश में पड़ गए। आखिर बेटी को ऐसे घर में कैसे भेज दें जहां उसे अपनाने को कोई भी राजी न हो और शेखर निराश वापस लौट गया । और जैसा की अनगिनत परिवारों मे होता आया था ,पाखी को भी दोनों बहनों और मां के गुस्से का सामना करना पड़ा । सुरभि ने किसी तरह उसे फोन करके इतनी ऊल-जलूल बातें कहीं की पाखी स्वयं पर काबू न रख सकी और शेखर को भी यह बात मालूम हो गई । जब मां ने भी उसे फोन करके अपने बेटे को फँसाने का आरोप लगाया तो पाखी सहन न कर सकी और आखिर उसने शेखर से संबंध तोड़ने की प्रतिज्ञा की। मगर शेखर हर विरोध के बाद भी अपना लेने को तैयार था। इन्ही संघर्षों के बीच पाखी की मां को लिवर में सूजन की शिकायत ने बुरी तरह से अपने घेरे में लिया था। वह हर सप्ताह मां को लेकर अस्पताल में रहती और शेखर के घरवालों के आरोप, ये सब उसके लिए जहर के समान थे । आज सुमन ने उसे कई संदेश भेजे थे की क्या वह उनके परिवार की बर्बादी का कारण बनकर खुश रह सकेगी और अगर उससे शादी के बाद शेखर को कुछ हो गया तो वो लोग पाखी को कभी माफ नहीं करेंगे आदि आदि। मां की बीमारी बढ़ती जा रही थी और उन्हें कभी भी कुछ भी हो सकता था। आखिर पाखी ने मजबूर होकर एक फैसला किया। उसने शेखर को कई बार समझाया की वह उससे शादी नहीं कर सकती पर वह असफल रही । आखिर उसने अपने मर जाने की बात कह उसे हथियार डालने पर मजबूर कर दिया। शेखर को हर तरह से अपने फोन पर ब्लॉक कर उसने सोचा की वह अब किसी के सर्वनाश का कारण नहीं बनेगी ।
खुशियों की चाँदनी काली अमावस्या में बदल गई थी और उन दोनों की दोस्ती का अध्याय समाप्त हो गया था।

(पाठकों , में कोमल ‘काव्या’ कहानियों के सफर में आपको सुना रही हूँ एक अनूठी कहानी शेखर और पाखी के मिलने और जुदाई की कहानी । आपने भी कभी जीवन में सच्चे प्रेम को करीब से महसूस किया हो तो यह कहानी अंत तक अवश्य पढ़ें और मुझ तक अपनी प्रतिक्रिया किसी भी माध्यम से पहुंचाएं। आपका प्रोत्साहन मुझे आगे लिखने की प्रेरणा देगा।)

अब आगे…

ट्रेन जब अहमदाबाद स्टेशन पर रुकी तो पाखी का दिल तेजी से धड़क रहा था। पाँच बरस के बाद वह छोटे भाई अरुण के साथ मौसी के घर आई थी, आठ वर्षों की लंबी प्रतिक्षा के बाद मौसी दादी बनी थी और उनके बहुत अनुरोध पर पाखी मां की अनुपस्थिति को भरने आई । मां का देहांत हुए चार वर्ष से ज्यादा हो चले थे। अरुण इंजिनियर की पढ़ाई कर रहा था और पिताजी अपने खराब स्वास्थ्य की वजह से सफर को टाल जाया करते थे। मौसी हमेशा की तरह इस बार भी उसे समझाने में लगी थी, तू चाहे तो मैं अभी भी एक से एक रिश्ते खड़े कर दूँ। पाखी नाराज हो जाती। पापा के बारे मे सोचा है? उनका कौन खयाल रखेगा? और सच तो ये है की मुझे शादी करनी ही नहीं । मौसी को भी शेखर के साथ हुए हादसे की थोड़ी बहुत खबर थी । अच्छा, तुझे कुछ पता है? उसका क्या बना जो रिश्ता लेकर देहरादून गया था ? कुछ नहीं मौसी। मुझे पता नहीं, अब तक तो उसकी शादी हो गई होगी। पाखी ने दोनों बहनों और शेखर के फेस बुक पर शेखर की शादी की कुछ तस्वीरें देख ली थी। जिसे याद करके वह फिर गरम-गरम आंसुओं को अपनी आँखों मे महसूस कर रही थी । वह क्यूँ अहमदाबाद आई? उसने खुद को कोसा। स्टेशन पर वह बुक स्टाल को खोजती रही पर न तो वह बुक स्टॉल मौजूद था न शेखर के होने के चिन्ह। मौसी की बातों ने उसके दिल के दबे हुए अंगारों को फिर सुलगा दिया था। क्या शेखर और उसके बीच केवल प्रेम का ही संबंध था? क्या उनकी शुरुआत की निर्मल दोस्ती कुछ भी नहीं थी? आज उसने शेखर को फोन लगाया था बिना कुछ सोचे कि इसका परिणाम क्या होगा। उसे तो उम्मीद भी न थी की शेखर उसका फोन रिसीव कर लेगा। लेकिन कुछ देर घंटी बजने पर शेखर की आवाज उसके कानों में पड़ी । वह स्तब्ध सा पाखी की आवाज के इंतजार में दूसरी तरफ से हॅलो हॅलो किये जा रहा था। अब पाखी के कहने की बारी थी, कैसें हैं आप? उसने पूछा। ठीक हूँ और आप? शेखर ने मुस्कुराने की कोशिश की। मैं अहमदाबाद मैं हूँ, क्या एक बार मिल सकते हैं? पाखी अनायास ही बोलती चली गई। उसने खुद को डांटा। शेखर चकित सा बोला, हाँ, बताइए, कहाँ से पिक करना है आपको? फिर खुद ही शर्मिंदा होकर बोल पड़ा, sorry, आनंद नगर आना है न ? पाखी बोली, आपको पता याद है, आपका ज्यादा समय नहीं लूँगी। बस आपसे मिलना चाहती थी। क्या शाम को पाँच बजे के बाद मिल सकते हैं? शेखर ने कहा, मैं पहुँच जाऊंगा। अतीत जैसे आज खुद को दोहरा रहा था, पाखी खुद समझ नहीं पा रही थी की आखिर शेखर से मिलने पर क्या उसे खुशी मिल पाएगी या फिर वह ज़िंदगी से और बेजार हो जाएगी। वह चुपचाप शेखर के बगल वाली सीट पर जा बैठी थी। शेखर ने कुछ पल उसे गौर से देखा और बिना कुछ बोले गाड़ी चलाने लगा। ठीक वही पार्क था जिसके पास उसने पाखी को उतरने को कहा था। दोनों एक खाली जगह घास पर जाकर बैठ गए। फोन पर आपने जवाब नहीं दिया की आप कैसी हैं। शेखर उसकी आँखों मे सीधे देख रहा था और जवाब खोजने की असफल चेष्ठा कर रहा था। पहले की तरह आज भी उसकी आंखे खाली थी, इसका मतलब की वह आज भी अकेली है! उसने सोचा। “मैं ठीक ही तो हूँ। देख तो रहें है। और आप ? आप तो खुश हैं न ?” वह आगे न कह सकी। जिस हाल मे छोड़ कर गई थी उसी हाल मे आज भी हूँ, उसके अंदाज में व्यंग्य था। “आप के घर मे सब कैसें हैं? उसने पूंछा।” मां तभी चल बसी थीं आपके जाने के दो महीनों बाद। पापा बीमार रहते हैं और अरुण पढ़ाई कर रहा है इंजिनियरिंग की। उसने थोड़े से शब्दों मे सब कह सुनाया । आपने हमेशा मुझे बेगाना समझा। एक बार बता नहीं सकती थी, शेखर ने तल्ख होकर कहा। जाने दीजिए। मुझे खुद उस समय होश नहीं था। मां ऐसे चली जाएंगी ये कभी नहीं सोचा था। पाखी उदास स्वर में बोली, अच्छा आपके घर मे सब कैसें हैं ? मां ठीक हैं, घुटनों का दर्द बढ़ गया है । एक लड़की है जो उनकी देखभाल करती है। सुमन दीदी और सुरभि अपने ससुराल मे ठीक हैं। शेखर बोला। पाखी बोली, मुझे पता है की आपकी शादी हो गई है। मैंने फेस बुक पर फोटो देखी थी। वह बोल रही थी की तभी शेखर बीच मे बोल उठा । और तलाक के तो फोटो होते नहीं जिन्हे फेस बुक पर अपलोड किया जा सके। पाखी चौंकी। क्या बोल रहें हैं आप? तलाक । हाँ ठीक सुना है आपने, मेरा तलाक हुए ढाई साल हो चुके हैं । पाखी ने शेखर का हाथ मजबूती से पकड़ लिया। क्या कह रहें हैं आप ? क्यूँ हो गया आपका तलाक ? उसने शेखर को झकझोर कर रख दिया। उसकी धमनियों में रक्त तेजी से संचारित हो रहा था। मां कहती है की हम सब पाखी के दोषी हैं इसलिए हमे ऐसी सजा मिली है। वह सूनी आँखों से भावहीन सा देखता पूरी कहानी कहता चला गया, सुमन दीदी ने अपनी देवरानी की बहन से रिश्ता करवाया था। सलोनी नाम था उसका मगर नाम के बिल्कुल विपरीत स्वभाव की थी बेहद खूबसूरत और उससे ज्यादा अहंकारी , न जाने किस जन्म का बदला लेने आई थी की केवल एक साल में जीवन जीने लायक न रहा। पहले तो घर के कामों को वह बेकार समझती फिर मां के प्रति दुर्व्यवहार, सुमन और सुरभि को तो अपनी नौकरानी समझती और अपने बाप के पैसों पर इतराती। बार-बार घर छोड़कर जाना और जगह-जगह मुझे बदनाम करना, बस यही काम था उसका। वह हमारे छोटे से घर में खुश नहीं रहती थी और हमेशा अपनी दूसरी सहेलियों के पतियों से मेरी तुलना करती। शेखर ने एक ठंडी सांस ली। बहुत लंबी कहानी है। किसी और दिन सुनाऊँगा। अगर ठीक लगे तो घर चलिए फिर आपको वापस पहुंचा आऊँगा। पाखी ने झिझकते हुए कहा। मां क्या सोचेंगी? कुछ भी नहीं, वो तो पहले ही शर्मिंदा हैं की आपके साथ बहुत अन्याय किया। मेरे बारे मे कुछ कहती हैं? पाखी उत्कंठा से पूछ ही बैठी । मुझसे तो नहीं पर आने-जाने वालों से आपका जिक्र करती हैं । कई बार बड़े जीजाजी देहरादून जाने की बात उठाते हैं पर मेरी चुप्पी से बात आगे बढ़ नहीं पाती। शेखर उसकी आँखों मे कुछ खोज रहा था । पाखी ने नजरें चुरा ली , उसे शेखर का वह देखना आतंकित सा कर जाता था मानो वह खुद पर से अपना नियंत्रण खो बैठेगी। क्यूँ नहीं आए ? वो बोली। आप जानती हैं मैं क्यूँ नहीं आया। उसके स्वर में तड़प थी। पाखी उठ खड़ी हुई, अच्छा, चलिए , मां से मिलने चलते हैं, उसने बड़े अधिकार से शेखर की उंगली पकड़ी।
मां से उसकी इस अप्रत्याशित मुलाकात ने पाखी को कुछ भी सोचने समझने का अवसर न दिया और मां इस बार उससे ऐसे मिली जाने कब से उसी का रास्ता देख रही हो। उनके आँसू, उनका कातर स्वर और शेखर के भविष्य की चिंता वो कुछ भी पाखी से छिपा न सकी। कौन जानता था की इस तरह तकदीर पासा पलटेगी। मां ने साफ शब्दों मे पाखी पर निर्णय छोड़ दिया। मैं एक बरस से देहरादून जाने के लिए कह रही हूँ मगर ये है की न मेरी सुनता न ही बहनों की । अब तू या गई है तो मुझे चैन मिल गया। आज मां ने खुद ही कहा, अच्छा इसे ऊपर कमरे में ले जा, मुझे यहाँ सफाई करवानी है फिर मैं चाय बनाकर भिजवाती हूँ। उन्होंने शेखर को आवाज दी। वही घर, वही शेखर, पाखी जैसे किसी सपने को जी रही है उसे लगा। सीढ़ियों तक पहुंचकर उसने देखा बहुत कुछ पहले जैसा नहीं रहा है। दीवारों के रंग फर्श पर लगी टाइलें रेलिंग का नया स्टील सब बदल दिए गए थे। “उसी ने बदलवाया था”, शेखर व्यंग्य और कड़वाहट से बोला। दोनों कमरे में आ गए। पाखी मां के सहज निश्छल प्रेम से गदगद थी सो बहुत अधिकार से जाकर पलंग पर बैठ गई और शेखर का हाथ खींचकर बोली, आप क्या खड़े रहेंगे, बैठिए। आपका ही कमरा है । वह शेखर के चेहरे पर मुस्कुराहट लाने का भरसक प्रयत्न कर रही थी । वह मुस्कुरा दिया। कितने सालों बाद वो दोनों आमने-सामने बैठे थे। पाखी ने देखा कमरे मे नया फर्निचर लगा हुआ था । ये सब शादी के बाद उसी ने बनवाया था , सब बदलना चाहती थी मुझे भी। पर अफसोस। शेखर ने ठंडी सांस भरी फिर कुशन गोद में लेकर उसके साथ खेलने लगा। पाखी को एकाएक याद हो आया । अब भी गातें हैं ? उसने म्यूजिक सिस्टम की तरफ इशारा किया । शेखर ने फोन को सिस्टम से कनेक्ट किया। बस यही एक चीज है जिसे छोड़ नहीं पाया । आए तुम याद मुझे गाने लगी हर धड़कन, एक-एक शब्द पाखी को विचलित कर रहा था। ये कब गाया? बहुत टाइम हो गया शायद एक साल पहले की रिकॉर्डिंग है । डायरी लिखते हैं उसने दराज की तरफ देखा। शेखर उठा, उसने डायरी निकाली और पाखी की गोद मे रख दी। पाखी चकित सी उसे देखने लगी । न जाने क्या था शेखर की आँखों में की वह अंदर से सिहर उठी। आज तक उसे अपना दुख अपना दर्द हमेशा बड़ा लगता आया था। शेखर को अपने से दूर करके उसने यही समझा की वह अपनी दुनिया में सुखी है उस दुनिया में जहां उसकी कोई जगह नही है। मगर डायरी के भरे हुए पन्ने उसे एहसास दिला रहे थे की एक दूसरे से अलग होकर भी वो एक दूसरे की यादों मे हमेशा जिंदा रहें हैं। “एक चीज देखोगी?” शेखर बोला। फिर बिना उत्तर का इंतजार किए अपना फोन निकालकर उसे दिखाने लगा। पाखी चकित सी फोन देखने लगी। एक-एक कर उसकी सारी तस्वीरें स्क्रीन पर फ्लैश हो रही थी। वो सारी तस्वीरें जो कमरे और बालकनी में शेखर ने खींची थी। वो तस्वीर भी जिसमें शेखर पाखी एक साथ थे इतने नजदीक की उसकी गरम सांसें उसे अभी भी पिघला कर रख देंगी। आपने डिलीट नहीं की ये सब, उसने नजरें चुराते हुए कहा। कोई उत्तर नहीं मिला। अच्छा, आज मुझे बिंगो और कैडबरी नही खिलाएंगे? पाखी ने उसे हँसाने की कोशिश की। अभी भी खाती हो ? शेखर ने धीरे से कहा। नहीं, मगर आज खाऊँगी वो भी एक नही दो। उसकी आँखें छलछला आई। । ठीक है। मैं अभी लेकर आता हूँ। वह बाहर चला गया। कुछ देर पाखी अतीत को याद कर रोती रही। फिर खुद को शांत कर बालकनी में चली आई। कितना कुछ बदल गया था। रेलिंग पर धूल जमी थी , गमलों के पौधों को शायद दो-तीन दिनों से पानी नहीं दिया गया था। मुरझाए से वो भी पतझर की कहानी कह रहे थे। उसने उत्सुकता से इधर-उधर देखा । पिंजरा नहीं था । शेखर उसे खोजता हुआ आ गया था ।
हरी राम कहाँ गया? उसने व्यग्रता से पूछा। किसी को पसंद नहीं था इसलिए दूर कर दिया। वह फिर उदास हो गया। पाखी उसके निकट आ गई। कुछ भी कहने का साहस उसमें और नही था। उसने अपना हाथ उसके कंधे पर रखा, चलिए अंदर चलते हैं। पलंग पर रखे पैकेट को उठा वह बड़े मनोयोग से बिंगो खाने लगी फिर उसने शेखर की तरफ हाथ बढ़ाया। उसने इनकार नहीं किया। फिर पैकेट खुद लेकर पाखी को खिलाने लगा। वह रो पड़ी। कितने सालों से वह इस पल को तरसी थी। उसने कहा, आज नही कहेंगे? शेखर जैसे उससे यही सुनना चाहता था , क्या ?वही जो हमेशा कहा करते थे , पाखी मुखर हो उठी । Can I hold your hand?
उसने कसकर शेखर का हाथ थाम लिया। शेखर रो रहा था। मैं हमेशा आपका हाथ थामना चाहता था। उसकी बात पूरी होती उससे पहले पाखी बोल पड़ी। नहीं आप नही। एक बार तुम कहिए। मैं आप से तुम होना चाहती हूँ। शेखर ने उसे खींचकर अपनी बाहों मे भर लिया। अब कभी छोड़कर तो नही जाओगी न ? वह लगातार उसके माथे और गालों को अपने चुंबनों से तप्त कर रहा था। डायरी के पन्ने हवा में आई तेजी से फड़फड़ा रहे थे।
और शेखर के गाए गीतों की एक एक पंक्ति पाखी का नाम गुनगुना रही थी ।

(तो पाठकों । ये थी पाखी और शेखर की अद्भुत प्रेम कहानी । बहुत संभव है की कहानी के पात्र आपके आसपास मौजूद हों या फिर शायद ये आप की ज़िंदगी की किसी घटना से मेल खाती हो। अगर आपको पसंद आई तो बहुत आभार ।

लेखिका- कोमल ‘काव्या’

Language: Hindi
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