“क़ुदरत और समय” हर चीज़ अपने हिसाब से चलाते हैं। इनके बारे में इंसान कभी कोई अंदाज़ा नहीं लगा पाता… भविष्य अपने आँचल में हमारे लिए क्या समेटे हुए है, हम पूर्णतया अनजान होते हैं, लेकिन ये सब तथ्य और सत्य जानते हुए भी…. हम इंसान खुद को अपने जीवन का मालिक समझ कर जीते रहते हैं।
प्रक्रति ने इंसान की बुद्धि को ये भ्रम देकर भेजा है कि सब कुछ इंसान के अपने हाथ में है। हाँ….जन्म और मृत्यु को वो किसी ऊपर आकाश में रहने वाली शक्ति द्वारा निर्धारित जरुर मानता है।
ऐसे ही जीवन के कुछ संशय को दर्शाती ये पुस्तक आपको जिंदगी के प्रति नया नजरिया दे पाए।
कशिश- एक मासूम, शांत और नरम दिल की मालिक जो बेकुसूर मारी जाती है।
कार्तिक- जो कशिश को पाकर भी खो देता है।
अहान- जिसके एक असुरक्षित विचार ने उसकी जिन्दगी को बदल कर रख दिया।
महिका- जो प्रेम के खुबसूरत सपनों में खोयी हकीकत को देख ही नही पायी।
कैसे “जीवन एक क्षणभंगुरता“ को चरित्रार्थ करती ये कहानी, एक के बाद एक घटती घटनाओं से सब कुछ बदल कर रख देती है चलिए पढ़ते हैं –
पुस्तक के कुछ अंश
वापसी…. या कहो जिन्दगी की ही कोई उम्मीद ना थी…. इसलिए घर से खाली हाथ निकला गया… मैं रास्ते भर डर, शर्मिंदगी, आत्म-ग्लानी, पछतावे और सब कुछ खो देने की तकलीफ से झुझता हुआ, मौत की तरफ़ बढ़ रहा था…. मैं कशिश के गावं के उस खंडहर के ठीक सामने खड़ा था…..शाम को विदा करते हुए, रात का अँधेरा धीरे-धीरे सब कुछ अपने आप में समेट लेने को बेताब था, वो रात…. बाकी रातों से ज्यादा खामोश, स्याह और डरावनी लगी थी मुझे…. और मैं बाहर खड़ा खंडहर को ऐसे देख रहा था जैसे कोई अपनी मौत को देखता है….. कितनी तकलीफ से कशिश ने मौत को गले लगाया होगा…..एक अनचाही मौत को….. उसी जगह आज मैं खड़ा था एक अनचाही मौत के सामने…..”। अहान कहकर रुका।
कार्तिक जैसे सांस रोके सुन रहा था।
“मैं काफी देर तक उस खंडहर के बाहर खड़ा….अन्दर जाने की हिम्मत जुटाता रहा…. तभी एक हवा का झोंका आया और सारी धूल इकट्ठी होकर एक अजीब आकृति की सूरत में खंडहर के दरवाजे से अन्दर की तरफ़ उड़ने लगी…… जैसे वो मुझे अन्दर आने को बोल रही हो…… मैंने एक नज़र सर उठा कर आसमान को देखा… मेरी आँखों से आंसू बह रहे थे… मैं जिन्दगी से हार गया था और मैंने कदम अन्दर की तरफ़ बढ़ा दिए….. एक-एक कदम, मैं जैसे… मौत की तरह… खंडहर की तरफ़ बढ़ा रहा था…. एक अनजाने खौफ़ से मेरी साँसे बंद हुई सी लग रही थी।
Read less