बड़ा ख़तरा है …..
वक़्त के लम्हों को किसने कब पकड़ा है
बाँहों में इसे कब किसी ने जकड़ा है
ज़रा यादें बना कर दिल के घरोंदें में सजा लो
वरना वहाँ से भी उड़ जाने का ख़तरा है……
बहती हवा के झोंकों को कहाँ कोई पकड़ पाता है
कब कोई इसके साथ बह पाता है
समय रहते ख़्वाबों को पंख दे कर उड़ लो
वरना उनके भी अधूरे रहने का ख़तरा है……
दिल की साँसो को कौन गिनता है
कब वो साथ छोड़ दे किस को पता है
किसी और के दिल में जगह बना कर जी लेना
वरना विलीन हो जाने का ख़तरा है……
क़दमों के निशान कहाँ किसी के हमेशा दिखते हैं
रोज़ ही बनते ओर रोज़ ही बिखरते हैं
प्यार और इकरार की राहें बना कर चलना
वरना निशानों के भी मिट जाने का ख़तरा है……
ताउम्र कौन साथ निभा पाता है
मौत का सिलसिला तो हर पल जारी रहता है
जितनी मिली ज़िंदगी वो ख़ुशियाँ बाँटने में लगा देना
वरना नामोनिशान भी न रहने का ख़तरा है……