___माँ की बनी रोटी___
मेरी माँ के हाथों की बनी रोटी…
होती है गोल मटोल-सी छोटी…
कभी वक्त मिले तुमको…
दुनियादारी की मोहमाया से…
कभी चैन मिले तुमको…
बे-सब्र सी व्यस्त दिनचर्या से…
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कभी न मिलेगा तुमको…
मीठा स्वाद खर्च करके रूपयो से…
कभी सुकून न मिलेगा तुमको…
गैरों के हाथों से बनी रोटी से…
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स्वाद अकेलेपन का मिलेगा तुमको…
पत्नी की परोसी हुई रोटी से. . .
घी में चुपड़ी रोटी कौन देगा तुमको…
भूख मिटेगी ममतारूपी माँ की रोटी से…
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कभी भरपेट भोजन कराया होगा तुमको…
माँ का पेट भर गया होगा दो रोटी से…
गरम रोटी आज भी बनाईं होंगी तुमको…
माँ की रोटी उत्तम होती है गैरों की रोटी से…
(स्वरचित)
#rahul_rhs