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28 May 2023 · 1 min read

__8__मैने नहीं देखा

चकोर को बिछुड़ते हुए बागों को उजड़ते हुए,
वादियों को घिरते हुए माला को बिखरते हुए,
बुतों को खिसकते वा लोगों को सिसकते हुए,
मैने नहीं देखा।।

भोर के लुटेरों को अपना घर लूटते चोरों को,
तूफानों वाले जोरों को जमीं हड़पते गोरों को,
जंगल चांद चकोरों को फैशन वाले छोरों को,
मैने नहीं देखा।।

जल रहा था वन छांव पाने को आतुर वो मन,
फटे चीरों से झांकता क्षुदा से व्याकुल वो तन,
जन- गण- मन से हिल रहे गाँव भारत भुवन,
मैने नहीं देखा।।

Language: Hindi
1 Like · 51 Views
Books from सत्येन्द्र पटेल ‘प्रखर’
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