__यूँ बे-वजह पटरी पर बैठा न होता__
नम होती हैं आँखें…
मगर अश्क नहीं झलकता…
हजारों होती हैं शिकायतें…
मगर अपना कोई नहीं समझता…
. _______________
न लिखी होती गरीबी इन लकीरों में…
यूँ ही बे-वजह घर से बे-घर नहीं होता…
गर होता गुजारा दी हुईं दो रोटियों में…
यूँ ही भूखा-प्यासा चुपचाप बैठा नहीं होता…
. ________________
अगर किसी को होती परवाह मेरी…
इक निवाला रोटी का, माँ की तरह खिला देता…
यूँ ही पटरी पर बैठ कचरे में न होती सुबह मेरी…
इक लिवाश इंसानियत का, माँ की तरह सहारा देता…
. _________________
तन को अपने जरूर ढ़ँकता हूँ, फटे-पुराने कपड़ों से…
पेट मेरा भी है इक वक्त की रोटी से गुजारा न होता…
काश…हारा न होता अपनी जिन्दगानी से…
यूँ बे-वजह आकर ट्रेन की पटरी पर बैठा न होता…
#जज़्बाती…
#rahul_rhs