_26_मुझे गम नहीं
तार- तार हो चुका है मेरा दामन,
राख हो गया है मेरा चमन,
सब आकांक्षाएं हो गईं दफ़न,
बांधा गया मेरे सिर कफ़न,
तोड़ गए वो अपने सारे वचन,
छलनी हो गया मेरा मन,
स्मृतियों की सब दीवार ढही,
सब कामनाएं पानी सी बही,
पर मुझे गम नहीं।।
आज़ाद आया था कभी यहां मैं ,
अब किसी की जागीर बन गया हूं,
जिया करता था कभी मैं,
अब तस्वीर बन गया हूं
यूं तो दुआ ही दिया करता हूं मैं,
वह कहते हैं बद्दुआ बन गया हूं,
संग गंवारा नहीं हमारा किसी को,
कहते हैं तुम इस काबिल नहीं,
पर मुझे कोई गम नहीं।।
कोई काबिल नहीं जिसे अपना कह सकूं,
जिसके कंधो में मैं अपना सर रख सकूं,
रब ने गैरों के आशियाने में भेजा है मुझे,
जिन्दगी ना उम्मीदियों में बिताने को,
यह शुक्र है कि रहमोकरम है दुनियां,
जो बेवफाई का तोहफ़ा दिया है,
तभी तो तन्हाइयों ने पाला है मुझे,
और रुसवाइयों ने दिया है उजाला मुझे,
पर मुझे गम नहीं।।