_16_दहेज़
मैने जाना जब एक राज तो,
आश्चर्य का ठिकाना न रहा मेरे,
कि अब हर घर में बसते हैं लुटेरे,
सुना था वस्तुएं ही बिकती हैं दुकानों में,
अब तो दूल्हे भी बिकते हैं बहुतेरे,
दहेज़ अधिनियम बन गया जहां में मेरे।।
चन्द सिक्कों में ईमान डगमगा जाते हैं,
जो देते हैं ज्यादा वही वर को पा जाते हैं,
फिर भी पेट नहीं भरता है तो मांग उठाते हैं,
पूरी ना हो तो मिलकर जिंदा तक जलाते हैं,
दहेज़ लेना जुर्म है शान से बताते हैं,
लेना हो तो जन्मसिद्ध अधिकार बताते हैं।।
क्या दहेज़ की आग कभी नहीं बुझ पाएगी,
बुझी नहीं तो इक दिन तेरा घर भी जलाएगी,
तिनका भी नहीं बचेगा यह सर्वनाश कर जायेगी,
इसलिए अच्छा है भूल को स्वीकार कर लें,
मिटाकर इस प्रथा को बहू का उपहार रख लें,
जन्नत होगा हर आंगन बस दहेज़ का तिरस्कार कर लें।।