_स्त्री रंग
चुलबुले बचपन से लेकर
बुढ़ापे की अवस्था तक
स्त्री सब पीड़ा सह लेती है
और सभी को सारे सुख देती है
खुद गम के आंसू पी लेती है
औरों के लिए हमेशा मुस्कुराती रहती है
खुद टूट कर भी संभालती है
अपनी ताकत से परिवार को संबल देती है
स्त्री रंगीन और रंगहीन जीवन के
दोनों पक्षों को हंस कर जी लेती है
अपनों को खिल खिलाने और मुस्कुराने का
ना जाने कहां से रंग सबको सौंपती है
सचमुच स्त्री ही रंगों का संसार रखती है,
होली का त्यौहार स्त्री की मुस्कान है,
तभी तो यह हंसता खेलता जहान है,
स्त्री जीवन की एक पहचान है।