966 ज़िदगी का सफर
भरोसा नहीं है पल भर का भी इस डगर में।
कब लग जाए पूर्ण विराम इस सफर में।
कभी फूलों भरी, कभी कांटों भरी है राहें।
कहना है मुश्किल, क्या मिलेगा इस सफर में।
चलते रहेंगे लोग इस डगर पर हर पल,
अपनों बेगानों का साथ लेते हुए,पल पल।
जाने पहुंचेंगे भी मंजिल पर अपनी।
या बीच राह छूट जाएगा हाथ इस सफर में।