945 तेरे लफ्ज़ तेरी बातें
तेरे लफ्ज़ों ने दर्द दिया मुझको, तेरी बातों ने गम।
फिर उन्हीं बातों, उन्हीं लफ्ज़ों ने लगाया मरहम।
क्यों ऐसा होता है, ए मेरे सनम।
जो दर्द देते हैं आज ,वही कल बन जाते हैं हमदम।
और फिर प्यार के किस्से चढ़ते हैं परवान।
फिर होता है कुछ ऐसा, कि बेदर्द हो जाते हैं सनम।
समय का चक्कर चलता है ,और फिर बिछड़ जाते हैं।
जो कहते हैं कि यह साथ न छूटे कभी किसी जन्म।
फिर उन्हीं यादों ,उन्ही बातों के सहारे कटते हैं पल।
फिर वही बातें वही लफ्ज़ दे जाते हैं गम।