943 अपने बेगाने
सोचा था जो अपने हैं,
हरदम साथ निभाएंगे।
क्या मालूम था हमें,
वो यूं बेगाने बन जाएंगे।
क्या है पैमाना अपने बेगाने का।
क्या पैमाना है साथ निभाने का।
वक्त बदला तो अपने बदले।
फर्क क्या रहा अपने बेगाने का।
छोड़ो प्रीत अपने बेगाने की।
रीत बदनीत है जमाने की।
प्रीत अपनी लगालो उससे।
झोलियाँ भरता जो ज़माने की।
6.05pm 10 June 2019 Monday