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13 May 2024 · 1 min read

9. *रोज कुछ सीख रही हूँ*

जैसे-जैसे उम्र बढ़ रही है…
“मधु” रोज कुछ सीख रही है।
कुछ बड़ों ने सिखाया, कुछ छोटों ने,
कुछ अपनों ने सिखाया, कुछ गैरों ने,
किस-किस ने क्या-क्या सिखाया…
ये लिस्ट लम्बी हो रही है।
“मधु” रोज कुछ सीख रही है।

ये जमीं सिखा रही सब सहना,
आसमां सिखा रहा ऊंचा उड़ना,
सूरज सिखा रहा गरिमा से जीना
सितारों संग जिंदगी चमक रही है,
“मधु” रोज कुछ सीख रही है।

पानी ने शीतल रहना सिखाया,
तो हवा ने निरंतर बहना सिखाया,
फूलों ने निरंतर खिलना सिखाया,
इनकी खुशबू से जिंदगी महक रही है।
“मधु” रोज कुछ सीख रही है।

गुस्से ने सब खोना सिखाया,
तो प्यार ने सबको अपना बनाना,
खामोशी ने शांत रहना सिखाया,
अपनों संग जिंदगी चहक रही है।
“मधु” रोज कुछ सीख रही है

🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏

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Books from Dr .Shweta sood 'Madhu'
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