9. पहचान
हर कुंड से
निकलती है
एक छोटी सी
धारा ।।
तय करती है जो
दूरियां
थोड़ी सी दूर_
अक्सर _
टकरा जाती है
अडिग -अविचल
पत्थर से वह,
कोई
छिटक जाती है ,
कोई
बिखर जाती है ।
मगर जो ?
टूटती नहीं ,
छितराती नहीं
औ’ बिखरती नहीं
सहजता और
सौम्यता से
बस अपना
पथ बदल लेती है –
केवल वही धारा
नदी रूप में
पहचान बन
सागर तक बहती –
पाई जाती है ।
सागर तक बहती
पाई जाती है।।
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