894 जिंदगी की ट्रैफिक लाइट
जिंदगी है ट्रैफिक लाइट जैसी।
जिंदगी की ट्रैफिक लाइट।
लाल बत्ती रहती है जब,
जीवन ठहर सा जाता है।
कुछ होनी ,अनहोनी का,
डर जैसे सताता है।
सोचता रहता है खड़ा हो,,
जिंदगी कब रफ्तार पकडे़गी।
कब मुश्किल होगी आसान,
कब यह फिर पटरी पर होगी।
पीली बत्ती होते ही,
आस का दीपक जल जाता।
ठहरे हुए पलों को,
आगे बढ़ाने का रास्ता खुल जाता।
सामना करने जीवन की राहों का,
हिम्मत फिर मानव जुटाता ।
तोड़ के सारे बंधन वो,
आगे बढ़ने को जुट जाता।
हरी बत्ती फिर देती रफ्तार,
दौड़ पड़ता लेकर जिंदगी की कार।
भूल जाता फिर दुख की लाल बत्ती,
आगे ही बढ़ता फिर हर बार।
फिर उसे रूकने की सोच कहाँ,
बढ़ता जाता हवा पर सवार।
अगर थोड़ा थम के चलता तो,
लाल बत्ती पर रुकना नहीं पड़ता हर बार।
सोच समझ कर चले अगर वो,
जिंदगी के सफर को करता हुआ पार।
धीमे धीमे आगे बढ़ के,
हो जाता भवसागर पार।
लाल बत्ती का सामना फिर,
नहीं करना पड़ता हर बार।
बिना रुके जिंदगी की गाड़ी,
कर लेती भवसागर पार।