855 क्या करूँ
यूँ तो है भरोसा मुझे तुझ पर,
पर क्या करूँ।
भरोसा तूने तोड़ा भी बहुत है,
मैं क्या करूँ।।
यकीन तो बहुत किया तुझ पर,
यकीन अब भी करता हूँ।
यकीन तूने तोड़ा भी बहुत है,
मैं क्या करूँ।।
कई बार गुजरा साथ तेरे,
कई राहों पर।
साथ तूने कई बार छोड़ा है,
मैं क्या करूँ।।
यूं तो अब तक भरोसा करता हूँ,
पर क्या करूँ।
तेरा साथ चाहता हूंँ पर डरता हूँ,
मैं क्या करूँ।।
भरोसा तू कर कायम अब,
जो मैं भरोसा करूँ।
यकीन तू मुझे दिला फिर से,
जो मैं यकीन तुझ पर करूँ।।