8.सूरज मत हुआ करो उदास,
सूरज मत हुआ करो उदास,
सुन लो बस मेरी यह बात ।
तुम ढलते हो तो सब संसार,
सुस्ताने लगता है आर पार,
अंधकार आता है जब बांहें पसार,
कहते सब यही बार-बार।
सूरज मत हुआ करो उदास,
सुन लो बस मेरी यह बात ।
तुम्हारे रहते , रहते सब बेखबर
ढलते हो तुम,तो हो जाते बेअसर ।
प्रकृति अपना नियम उलट कर ,
रहता नियत बदलने को डर ।।
सूरज मत हुआ करो उदास ।
सुन लो बस मेरी यह बात ।
यूं तो इस भयावह जंगल में,
तुम उगकर भी नहीं उगते हो।।
फिर भी तुम्हारे होने का एहसास,
देता है सुख चैन और दिलास ।
सूरज तुम मत हुआ करो उदास।
सुन लो बस मेरी यह बात ।
यूं तो तुम्हारी यह उदासी ,
उस नीड़ की है याद दिलती ,
जिसे छोड़ सभी संगी साथी,
स्वहित रख देते सब धाती ।
फिर भी तुम मत हुआ करो उदास।
सुन लो बस मेरी यह बात ।
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