ख्वाब सुलग रहें है... जल जाएंगे इक रोज
*तन मिट्टी का पुतला,मन शीतल दर्पण है*
ना कहीं के हैं हम - ना कहीं के हैं हम
ज्ञान से शिक्षित, व्यवहार से अनपढ़
*रोटी उतनी लीजिए, थाली में श्रीमान (कुंडलिया)*
विश्व की पांचवीं बडी अर्थव्यवस्था
1)“काग़ज़ के कोरे पन्ने चूमती कलम”
टूटकर बिखरना हमें नहीं आता,
अगलग्गी (मैथिली)
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
मेरा तो इश्क है वही, कि उसने ही किया नहीं।
दिन गुज़रते रहे रात होती रही।