3-फ़क़त है सियासत हक़ीक़त नहीं है
वो कहते हैं मिलने की मुहलत नहीं है
हक़ीक़त में उनको महब्बत नहीं है
ये बेटी बचाओ पढ़ाओ की बातें
फ़क़त है सियासत हक़ीक़त नहीं है
तलबगार है ये जहाँ झूठ का पर
कहे सच कोई ये भी हिम्मत नहीं है
मिलेंगे किसी और ही जन्म में हम
अभी तो जहाँ की इजाज़त नहीं है
सियासत के रंगों में डूबा हुआ है
इसी वास्ते उसमें ग़ैरत नहीं है
महब्बत की क़ीमत को समझेगा वो क्या
मिली जिसको नफ़रत से फ़ुर्सत नहीं है
तू सूली चढ़ा या ज़मीं-दोज़ कर दे
‘विमल’ को मुकरने की आदत नहीं है
@अजय कुमार ‘विमल’