“555आले बिस्कुट
“555आले बिस्कुट”
वें बचपन आले दिन बाबू ,
एक बार दोबारा ल्यादे नै।
वो 555 आले बिस्कुट बाबू ,
मनै एक बै फेर दुवादे ने।।
पांव के ऊपर थाली धर के,
रोटी मनै खुवा दै ने।
कांधे ऊपर बिठा कै बाबू,
खेत में मनै घूमा दै नै ।।
गाम के धोरे कोल्हू चालै,
वो ताता गुड़ खुवा दै ने।।
शीशम का ढाला बाट देखरया,
वो झूला मनै झूला दै नै।।
वो 555 आले बिस्कुट बाबू ,
मनै एक बै फेर दुवादे ने।।
बैलगाड़ी लेके खेत में जाणा,
वो रस्सी मनै पकड़ा दै नै।।
सुहागे पै बिठा के बाबू,
एक बै फेर पिंगा दै नै।।
बचपन आला टेम जा लिया,
फेर बचपन में ल्या दै नै।।
बलकार लिखणा सीख सै,
मेरी कलम दवात भी ल्यादे नै।।
वो 555 आले बिस्कुट बाबू ,
मनै एक बै फेर दुवादे ।।
@बलकार सिंह हरियाणवी