50….behr-e-hindi Mutqaarib musaddas mahzuuf
50….behr-e-hindi Mutqaarib musaddas mahzuuf
fe’lun fe’lun fe’lun fe’lun fe’lun fe’lun २२ २२ २२ २२ २२ २२
अँधेरे में यादों की परछाई रखता है
एक वही तो बस दूर की बीनाई रखता है
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जिसके हाथ खुले पर पैरो में ज़ंजीरें
वह बातें तनहा जग हंसाई रखता है
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दिखता फटेहाल उसने सीखा यहीं सलीका
अब नादान जेब अच्छी सिलाई रखता है
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हमको बखिया उधेड़ने की धुन रहती है
वही यक़ीनन वाजिब तुरपाई रखता है
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हम तो ढूँढ़ रहे, टूटे रिश्तों के वजूद
मन ये कबाड़ बुनी चारपाई रखता है
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सब ने देखा उसको, दूर शहर से आते
कहने सरमाया फ़कत चटाई रखता है
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर
जोन 1 स्ट्रीट 3 दुर्ग छत्तीसगढ़