[5]छंद- मनोरमगीतिका -ज्ञान भी इक जलजला है
छंद- मनोरमगीतिका
मापनी- 2122 2122
प्रेम कैसा मनचला है
ज्ञान भी इक जलजला है ll
बंदगी हो जिंदगी में ,
सादगी भी इक कला है ll
प्रेम मानस का समुन्दर
साहसी बल करबला है ll
दौर बदले हम न बदले
प्रेम मनसुख मन पला है ll
चाहतें उनकी तमन्ना
बन गजल उनको छला है ll
गीतिका लिखता रहा मैं
छंद लघु गुरु वट फला है ll
राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी