4714.*पूर्णिका*
4714.*पूर्णिका*
🌷 कुछ तुम्हें देना था🌷
2122 22
कुछ तुम्हें देना था।
कुछ हमें देना था।।
देखते क्या देखे।
कुछ जमे देना था।।
भूल जाते हैं सब ।
कुछ नफे देना था।।
अक्ल नहीं बस अंधे।
कुछ दफे देना था ।।
आज बेदिल खेदू।
कुछ नए देना था ।।
…….✍ डॉ.खेदू भारती “सत्येश”
20-10-2024रविवार