4659.*पूर्णिका*
4659.*पूर्णिका*
🌷 भाव तुम खाते रहो 🌷
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भाव तुम खाते रहो।
ताव तुम भाते रहो।।
जो दिखे रास्ता शहर।
गांव तुम आते रहो।।
कूक क्या कौआ कहाँ ।
कांव तुम गाते रहो ।।
लो सवा चाहत अपनी।
पाव तुम पाते रहो।।
धूप में मस्त है खेदू।
छांव तुम छाते रहो।।
………..✍️ डॉ. खेदू भारती। “सत्येश “
15-10-2024 मंगलवार