4603.*पूर्णिका*
4603.*पूर्णिका*
🌷 अपनों को रोते देखा 🌷
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अपनों को रोते देखा।
सपनों को सोते देखा।।
चौपट भी सारा जीवन ।
फसलों को बोते देखा।।
बिन पानी तो है सब सुन ।
फूल पत्ते खोते देखा ।।
मरना जीना क्या कहना।
कब नाती पोते देखा।।
गंगा पावन है खेदू।
पाप यहाँ धोते देखा।।
……✍️ डॉ. खेदू भारती “सत्येश “
10-10-2024 गुरुवार