कब उन्हें मूल जन्मभूमि वापस मिलेंगे ?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद और पहले ‘कश्मीरी पंडित’ ! वर्ष 2018 में ट्विटर पर कुछ कश्मीरी पंडित पत्रकारों ने बरखा दत्त की कश्मीर सम्बन्धी एक रिपोर्ट के बारे में तीखी आलोचना की है, जिसमें सुश्री बरखा ने वर्ष 1989 की सांप्रदायिक हिंसा के दौरान कश्मीरी पंडितो के नरसंहार, बलात्कार और अपने पूर्वजों की भूमि से विस्थापना के लिए पंडितो को ही जिम्मेवार ठहराया है।
सुश्री बरखा ने अपनी रिपोर्ट में कश्मीरी पंडितों की समृद्धि और मुसलमानों की गरीबी के कारण उत्पन्न आर्थिक असमानता को पंडितों के विरुद्ध हुई हिंसा का कारण बताया है। बरखा कहती है कि पंडितों ने सरकारी नौकरियों, बढ़िया पोस्टिंग और सामाजिक लाभों पर एकाधिकार जमा लिया था।
कश्मीरी पंडितों में श्री राहुल पंडित, श्री आदित्य राज कौल एवं सुश्री आरती टिक्कू सिंह, जो कश्मीरी पंडित पत्रकार हैं और इन्होंने सुश्री बरखा के इस कथानक को चुनौती दी। बाद में और भी कश्मीरी पंडित जुड़ते गए और झूठे कथानक के चिथड़े उड़ा दिए।
इन पत्रकारों ने कई पुस्तकों और समाचार पत्रों में छपी रिपोर्ट के माध्यम से बताया कि कैसे कश्मीरी मुस्लिम, कश्मीरी पंडितों की तुलना में अधिक समृद्ध थे तथा उनसे अधिक सरकारी नौकरियों में थे।
इसके अलावा इन पंडितों ने हिंसा के समय अपने ही घर से निकाले जाने का बड़ा ही मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया कि कैसे इन्हें घर से बेदखल कर दिया गया ? इन्हें ज़मीन पर सोना पड़ा ! मां को मंगलसूत्र बेचकर खर्च का वहन करना पड़ा ! मेडिकल कॉलेज में एडमिशन देने से मना कर दिया और कहा गया कि यहां पर क्या करोगे, तुम्हारे लिए तो ‘भारत’ है।
जब कश्मीरी पंडितों को हिंसा के द्वारा कश्मीर घाटी से खदेड़ा गया तो उस समय के पोस्टर तथा नारे फोटो भी इन लोगों ने लगाई है जिनमें इन्हें वहां के रहने वाले बहुसंख्यकों ने धर्म के आधार पर उन्हें बाहर निकल जाने को कहा। इन पत्रकारों ने लिखा कि कैसे बरखा जी श्रीनगर में थी, लेकिन रिपोर्टिंग करते समय उन्होंने यह बतलाया कि वह एलओसी से रिपोर्ट कर रही हैं।
जवाब में सुश्री बरखा ने माना कि रिपोर्टिंग के समय वह एक युवा पत्रकार थी और उनका विश्लेषण गलत हो सकता था। यहां बात सही या गलत होने की नहीं है क्योंकि सत्य केवल सही होता है। और सच यह है कि कश्मीरी पंडितों का, आतंकी देश के इशारे पर उन्मादी धर्म और जिहाद के नाम पर जनसंहार किया गया, उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार, घर को हड़प लिया और कश्मीर से बाहर निकाल दिया।
कश्मीर की समस्या हममे वर्षों पहले सुलझा ली होती, नेताओं के समर्थन या गैरसमर्थन के बावजूद भी, अगर कश्मीरी पंडित बुद्धिजीवी, पत्रकार तथा आम आदमी अपने अधिकारों के लिए खड़ा होता तथा उनके विरुद्ध हुई हिंसा को सामने लाता।
ऐसा नहीं है कि इस प्रकार के प्रयास पहले नहीं हो रहे थे। लेकिन मीडिया उनकी खबरों को छापता नहीं था तथा टेलीविजन चैनल ऐसे पंडितो को अपने कार्यक्रम में बुलाते नहीं थे।
इन पत्रकारों ने यह भी आरोप लगाया है कि न्यूज़ चैनल में उनके आने पर अघोषित पाबंदी लगा दी गई थी। लेकिन भला हो सोशल मीडिया का कि वे ना केवल अपनी कहानी सामने रख पा रहे हैं बल्कि दूषित तथा झूठी खबरों का दृढ़तापूर्वक खंडन भी कर रहे हैं।
एक बार सोचिए, अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में नहीं आए होते तो क्या इन कश्मीरी पंडित पत्रकारों की हिम्मत होती कि वह बरखा का विरोध कर पाते और अपनी स्टोरी हम सबके सामने रख पाते? यह साहस तो उनमें नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही आया है।
जब लोग कहते हैं कि नरेंद्र मोदी ने यह नहीं किया, वह नहीं किया, तो वे यह भूल जाते हैं कि उन्होंने स्वयं क्या किया।
नरेंद्र मोदी अकेले कुछ नहीं कर सकते। हम सब को भी आगे बढ़ना होगा और इस दूषित, कुलषित, आतंकी विचारधारा का विरोध करना होगा।
नरेंद्र मोदी का कार्य है हमें सशक्त बनाना, हमारे उत्साह को बनाए रखना, और हमारे सामर्थ्य को बल देना।
क्योंकि मैं नरेंद्र मोदी हूं। आप नरेंद्र मोदी हैं, और हम सब नरेंद्र मोदी हैं।
अपने सामर्थ्य को समझिए और पहचानिए। और अपने आप पर भरोसा बनाए रखिए। ऑनलाइन अखबार मेकिंग इंडिया में श्री अमित सिंघल ने जो जानकारी दी है, उसे ही एतदर्थ प्रस्तुत की गई है। अगस्त 2019 में अनुच्छेद-370 खत्म होने के बाद और दो राज्य बनकर, वो भी केंद्रशासित– अब सभी विवादों को निपटते चले जा रहे हैं!