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3 Jan 2025 · 1 min read

34. यादों के कसीदे

यादों के कसीदे पढ़ता हूँ ज़िंदगी की जुबान होंठों प’ लिए,
ये दर्द बड़े बेगैरत हैं चाहे से भी दूर जाते नहीं।

यूं तो लाखों जवाब होते हैं कहने को मेरे दिल का हाल,
ये होंठ बड़े बेगैरत हैं चाहे से भी खुल जाते नहीं।

हर शाख प’ मेरे गीतों के अल्फ़ाज़ मिलेंगे उनके यहाँ,
ये लफ़्ज़ बड़े बेगैरत हैं चाहे से भी मिट जाते नहीं।

वो ख्वाब वीराने हो गए जब उनकी दुनिया अनजान हुई,
ये तारें बड़े बेगैरत हैं चाहे से भी सो जाते नहीं।

इश्क की राहों को छोड़ ‘घुमंतू’ चल पड़े हैं किसी और गली,
ये अश्क बड़े बेगैरत हैं चाहे से भी छूट जाते नहीं।।

~ राजीव दत्ता ( घुमंतू )

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