33 लयात्मक हाइकु
कुछ प्रयोगात्मक हाइकु जिनको लयानुसार गाया जा सकता है। सन 2000 में रचित इनकी हर पंक्ति में 8 मात्राएं हैं।
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1.
माँग न प्यारे
अब इनसे जल
प्यासे बादल।
+ रमेशराज +
2.
झीलें सूखीं
खिले कमल-दल
बोलें पागल।
+ रमेशराज +
3.
चंचल आँखें
उसके मुख पर
बादल आँखें।
+ रमेशराज +
4.
मेघ न दीखें
चातक-सम मन
आया सावन।
+ रमेशराज +
5.
जंगल हूँ मैं
पर यह भी कह
संदल हूँ मैं।
+ रमेशराज +
6.
नदी न झीलें
इस मुकाम पर
दीखें पोखर।
+ रमेशराज +
7.
प्रेम-दिवानी
मन में मधुरस
कली सयानी।
+ रमेशराज +
8.
कली खिले तो
गहें विहँस कर
गले मिले तो!
+ रमेशराज +
9.
सीप कहाँ है
सागर तट तम
दीप कहाँ है?
+ रमेशराज +
10.
मीन रेत पै
घिरें न जलधर
पीर खेत पै |
+ रमेशराज +
11.
रोयीं नदियाँ
तप-तप रज में
खोयीं नदियाँ।
+ रमेशराज +
12.
आता है झट
वन यदि कटते
पानी – संकट |
+ रमेशराज +
13.
आस न छोड़े
यह चातक मन
प्यास न छोड़े |
+ रमेशराज
14.
माँ है निर्जल
प्रभु से सुत हित
माँगे सत्फल |
+ रमेशराज
15.
सूपनखाएँ
नाक विहँस अब
स्वयं कटाएँ।
+ रमेशराज +
16.
मात भवानी
बढ़े हर तरफ
खल-अज्ञानी ।
+ रमेशराज +
17.
दुर्गे ये कर
खल न रहें अब
माते भू पर ।
+ रमेशराज +
18.
सुन माँ काली
अति दुःख दें अब
दुष्ट मवाली ।
+ रमेशराज
19.
ओ माँ कमला
खल सम्मुख फिर
नारी अबला ।
+ रमेशराज +
20.
मात शारदे
खल-दल जितने
तू संहार दे ।
+ रमेशराज +
21.
सभी तंग हैं
इस मुकाम पर
रंग भंग हैं |
+ रमेशराज
22.
सुता सयानी
सहज नींद अब
पिता न जानी।
+ रमेशराज +
23.
छुपे विचारी
अबला इत-उत
फतबे जारी।
+ रमेशराज +
24.
दीप जला ले
कुछ तो रख मन
पास उजाले।
+ रमेशराज +
25.
तन शूली पै
कह सच को सच
मन शूली पै।
+ रमेशराज +
26.
लगे साँझ-सी
हास न मुख पर
खुशी बाँझ-सी।
+ रमेशराज +
27.
विधवा शामें
निश-दिन ही दुःख
है कविता में।
+ रमेशराज +
28.
रहे न प्याले
गुम है मधुरस
याद निवाले।
+ रमेशराज
29.
यों आये दिन
चुभती नित पिन
बुरा वक़्त है।
+ रमेशराज +
30.
बातें सनकी
जिरह चुभन की
इन्सां करता।
+ रमेशराज +
31.
आज लफंगा
लाकर अति खुश
विष की गंगा।
+ रमेशराज +
32.
घना अँधेरा
नियति नयन की
बना अँधेरा।
+ रमेशराज +
33.
नहीं लाज ही
खुद उघरे तन
दिखे द्रौपदी।
+ रमेशराज +